खबरी नेशनल न्यूज नेटवर्क
लखनऊं। उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी अपने नए प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा जल्द करने जा रही है। अटकलें इस पर तेज है कि अध्यक्ष किस जाति.वर्ग से होगा, दलित, पिछड़ा या ब्राह्मण। चूंकि संगठन मंत्री पिछड़ा वर्ग से बना दिए गए हैं इसलिए अधिक संभावना यही है कि पार्टी अब दलित कार्ड ही खेलेगी और यदि रणनीति पारंपरिक रही तो अध्यक्ष ब्राह्मण वर्ग से होगा।
प्रदेश अध्यक्ष के पद पर स्वतंत्रदेव सिंह तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा कर चुके हैं। स्वतंत्रदेव योगी सरकार में मंत्री बनाए जा चुके हैं। इसलिए एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत से भी इस पद पर अब नहीं रहेंगे। पिछले दिनों त्याग.पत्र केंद्रीय नेतृत्व को भेजने के बाद वह नए अध्यक्ष की नियुक्ति तक ही इस जिम्मेदारी को संभाल रहे हैं। बुधवार को धर्मपाल को प्रदेश में संगठन मंत्री बनाए जाने के बाद अब प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्त का ही निर्णय शेष रह गया है।
देखना है भा ज पा खेलती है कौन सा कार्ड, दलित ,पिछड़ा या ब्राह्मण
इसलिए इन अटकलों को अब विराम देना तर्कसंगत होगा कि सर्वाधिक आबादी वाले पिछड़ा वर्ग को साधने के लिए पार्टी विधानसभा चुनाव की तरह लोकसभा चुनाव में भी संगठन की कमान पिछड़ा वर्ग के नेता के हाथ में रखेगी। चूंकि संगठन मंत्री का पद महत्वपूर्ण होता है इसलिए अध्यक्ष दूसरी जाति का बनाया जाएगा।
भाजपा 2014 के बाद से ही करिश्माई आंकडों को छूती हुई 2014 से 2022 तक लोकसभा से लेकर विधानसभा चुनावों में प्रचंड बहुमत से जीत हासिल करते आ रही है पर इस जीत को बरकार रखने के लिए भाजपा को अपने सबसे बडे मूल संगठन को जीवित रखना है। यही कारण है कि “एक व्यक्ति एक पद” के तहत अब स्वतंत्र देव सिंह के इतर अन्य नामों पर चर्चा तेज हो गई है।
ऐसे में दौड़ में बचे दलित और ब्राह्मण जिसमें सर्वाधिक संभावना दलित की ही जताई जा रही है। इसके पीछे राजनीतिक जानकारों का तर्क है कि पार्टी ने उपमुख्यमंत्री के पद पर पिछड़ा वर्ग के केशव प्रसाद मौर्य के साथ ब्राह्मण वर्ग के ब्रजेश पाठक को रखा है। पाठक काफी सक्रिय भी हैं। अब सिर्फ दलित वर्ग ही ऐसा बचा है जिसका प्रतिनिधित्व सरकार या संगठन में किसी प्रभावशाली पद पर फिलहाल नहीं दिखता है। साथ ही विधानसभा चुनाव में दलित मतदाताओं ने बसपा से छिटककर भाजपा को भरपूर वोट दिया है। भाजपा लोकसभा चुनाव में भी इस वोटबैंक को अपनी ओर आकर्षित करना चाहेगी। यदि इसी दिशा में विचार किया जाए तो दावेदारों में कई नाम उभरकर सामने आते हैं। अव्वल तो प्रदेश महामंत्री व विधान परिषद सदस्य विद्यासागर सोनकर का नाम है। बूथ अध्यक्ष से लेकर सांसद तक का सफर तय कर चुके सोनकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि से हैं और संगठन में जिलाध्यक्ष से लेकर अनुसूचित जाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष तक के पद पर रह चुके हैं।
दलित वर्ग ही ऐसा बचा है जिसका प्रतिनिधित्व सरकार या संगठन में किसी प्रभावशाली पद पर फिलहाल नहीं दिखता
वर्तमान में भाजपा के प्रदेश महामंत्री हैं। कार्यकर्ताओं के लिए परिचित.चर्चित चेहरा भी हैं। दावेदारों में प्रदेश उपाध्यक्ष व एमएलसी लक्ष्मण आचार्य भी हैं। वह अनुसूचित जनजाति से संबंध रखते हैं और संगठन से जमीनी कार्यकर्ता हैं। इसी तरह पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव व केंद्रीय मंत्री रह चुके इटावा सांसद डाण् रामशंकर कठेरिया के नाम की भी चर्चा है। वह भी संघ के प्रचारक रहे हैं। संघर्षशील कार्यकर्ता की छवि है। इसके इतर यदि पार्टी ब्राह्मण वर्ग पर ही दांव लगाना चाहेगी तो भी कुछ विकल्प सबसे अधिक चर्चा में हैं। इनमें कन्नौज सांसद सुब्रत पाठक संगठन की पसंद हो सकते हैं क्योंकि कन्नौज में वह सपा से लंबा संघर्ष कर चुनाव जीते। युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रहे और वर्तमान में पार्टी के प्रदेश महामंत्री हैं। वही अगर ब्राह्मण समाज से देखा जाय तो संगठन के अनुभवी पूर्व उपमुख्यमंत्री डा0 दिनेश शर्मा और पूर्व ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा के अलावा अलीगढ़ सांसद सतीश गौतम अध्यक्ष पद की रेस में माने जा रहे हैं।