सलिल पांडेय,
खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क
मां सरस्वती कब रुष्ट होती हैं?
कीन्हें प्राकृत जन गुन गाना,
सिर धुनि गिरा लगत पछिताना
अर्थ- संसारी मनुष्यों का गुणगान करने से सरस्वती जी सिर धुन कर पछताने लगती हैं (कि मैं क्यों इसके बुलाने पर आयी)
रामचरितमानस, बालकांड 11/7
★रुपये और रुतबे के चलते किसी व्यक्ति को महिमामण्डित करते वक़्त शब्दों का अतिरेक करने से मां सरस्वती रुष्ट होती हैं।
★अतिरेक का आशय किसी की तुलना देवी-देवता से करना है।
★देवी-देवताओं के अवतरण की तरह किसी व्यक्ति के लिए कहना कि ‘उसका अवतरण हुआ है’ दोषपूर्ण है।
★अवतरण की व्याख्या वृहद है। इसका प्रयोग करने के पहले किसी ज्ञाता से समझ लेना चाहिए।
सरस्वती रुष्ट होती हैं तो क्या होता है?
★ऐसा नहीं कि माता सरस्वती की कृपा से ज्ञानी व्यक्ति मूर्ख हो जाएगा।
★लेकिन सरस्वती उससे विदा लेने लगती हैं तो उसकी अगली पीढ़ी में ज्ञान के प्रति विरक्ति हो जाती है।
★पीढ़ी में ज्ञान का असर कम होने लगता है और संभव है कि पीढ़ी अज्ञानी हो जाए।
★इस सम्बंध में अनुभवी लोगों का मानना है कि संसारी लोगों की तुलना भगवान से करना, उन्हें अवतार बताना अशुभकारी रहा है।
★खासकर विविध मंचों पर स्वागत-अभिनन्दन, आलेखों-अग्रलेखों में देव श्रेणी का घोषित
करने वालों को गोस्वामी जी की चौपाई का मनन अवश्य करना चाहिए।
★ऐसे लोग महसूस करें कि इस तरह की प्रशस्ति का उनके जीवन पर क्या असर रहा ?
पूरा विश्व आस्तिक है, नहीं कोई है नास्तिक!
★जो धर्म के प्रति आस्था रखते हैं, उनके लिए यह चौपाई मनन योग्य है।
★जो नास्तिक हैं। वे इससे मुक्त हैं।
★लेकिन कई नास्तिकों का कहना है कि जब उन्हें हार्ट-अटैक, अन्य कोई गंभीर बीमारी या असह्य संकट आया तो मुंह से ‘हे भगवान, बचा लो’ अपने आप निकलता रहा।
★कोई मनुष्य जीवन में दुःख और कष्ट नहीं चाहता। वह आनन्द चाहता है।
★आनन्द चाहने वाला हर कोई उसी परमानन्द के प्रति आसक्त हैं, जिनका उल्लेख ऋषियों ने किया है।