जिले के विशेष न्यायालय पॉक्सो ने नाबालिग के किडनैप और छेड़छाड़ के दोषी को 3 साल की जेल और 11 हजार रुपए जुर्माना भी लगाया गया है। जुर्माना न देने पर तीन माह के अतिरिक्त कारावास की सजा ।
खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क
चंदौली। धीना पर 2019 में पंजीकृत मुकदमा में पॉक्सो और एससी एसटी एक्ट में रैथा निवासी बुल्लू उर्फ शमसाद कनौजिया को न्यायाधीश पाक्सो ने सोमवार को दोषसिद्ध करते हुए तीन वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनायी। साथ ही 11 हजार के अर्थदंड की सजा सुुनाई है।। अर्थदंड नहीं देने पर एक माह का अतिरिक्त सश्रम कारावास भुगतना होगा।
दोषी को कोर्ट से सजा दिलाने में पुलिस की प्रभावी पैरवी रही महत्वपूर्ण
प्राप्त जानकारी के अनुसार जिले के पाक्सो कोर्ट के द्वारा नाबालिग किशोरी से छेड़खानी के मामले की सुनवाई के बाद साक्ष्यों के आधार पर दोषी को तीन साल की सजा सुनाई। इसके अलावा दोषी को 11 हजार रूपये का अर्थदंड भी लगाया गया है। अर्थदंड जमा नहीं करने पर दोषी को एक माह की अतिरिक्त सजा कारागार में गुजारनी होगी। दोषी को कोर्ट से सजा दिलाने में पुलिस की प्रभावी पैरवी को महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
2017 में दर्ज कराया था नाबालिग से छेड़खानी का मुकदमा
धीना थानाक्षेत्र के एक गांव निवासी व्यक्ति के द्वारा वर्ष 2017 में नाबालिग किशोरी से छेड़खानी करने का आरोप लगाते हुए मुकदमा दर्ज कराया गया था। इस मामले में जांच के दौरान धीना थानाक्षेत्र के रैथा गांव निवासी बुल्लु उर्फ शमशाद कन्नौजिया का नाम आरोपी के रूप में प्रकाश में आया। इसी मामले की सुनवाई पाक्सो कोर्ट के विशेष न्यायाधीश राजेंद्र प्रसाद की अदालत में सुनाई हुई। जिसमें अभियोजन और पुलिस विभाग के द्वारा आरोपी के खिलाफ तमाम साक्ष्य प्रस्तुत किया।
बुल्लु उर्फ शमशाद कन्नौजिया को दिया दोषी करार ‚शमशाद को तीन साल की कैद और 11 हजार रूपये का जुर्माना
कोर्ट के द्वारा तमाम साक्ष्यों और अधिवक्ता के तर्क के आधार पर बुल्लु उर्फ शमशाद कन्नौजिया को दोषी करार दिया। कोर्ट के द्वारा शमशाद को तीन साल की कैद और 11 हजार रूपये का जुर्माना लगाया गया। जुर्माना जमा नहीं करने पर दोषी बुल्लु उर्फ शमशाद कन्नौजिया को एक माह की अतिरिक्त सजा भुगतना होगा। अभियोजन की ओर से एडीजीसी रमाकांत उपाध्याय ने कोर्ट में साक्ष्य और तर्क प्रस्तुत किया। जिसके चलते पीड़िता और उसके परिवार को न्याय मिला है।
क्या है पास्कों एक्ट जाने डिटेल
Pocso एक्ट क्या है?POCSO अधिनियम को बच्चों के हित और सुरक्षा का ध्यान रखते हुए बच्चों को यौन अपराध, यौन उत्पीड़न तथा पोर्नोग्राफी से संरक्षण प्रदान करने के लिए साल 2012 में लागू किया गया था। POCSO का फुल फार्म Protection of Children from Sexual Offences Act– POCSO (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम) होता है।
इस अधिनियम में ‘बालक’ को 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है और यह बच्चे का शारीरिक, भावनात्मक, बौद्धिक और सामाजिक विकास सुनिश्चित करने के लिए हर चरण को ज्यादा महत्त्व देते हुए बच्चे के श्रेष्ठ हितों और कल्याण का सम्मान करता है। इस अधिनियम में लैंगिक भेदभाव नहीं है।
2019 में हुए बदलाव, सजा बढ़ाई गई
बच्चों पर यौन अपराध करने के लिए मौत की सजा सहित अधिक कठोर सजा देने के लिए 2019 में अधिनियम में संशोधन किया गया। पॉक्सो एक्ट में संशोधन करके 16 साल से कम उम्र के बच्चों से रेप के मामले में 10 साल की न्यूनतम सजा को बढ़ाकर 20 साल कर दिया गया। दुष्कर्म के मामले में सुनवाई तीन माह में और अपील छह महीने में निस्तारित करने का प्रावधान किया गया। इसमें यह भी प्रावधान किया गया कि 12 साल से कम उम्र के बालक एवं बालिका से रेप या कुकर्म के दोषी को मौत के अतिरिक्त न्यूनतम 20 साल की जेल या उम्रकैद की सजा भी दी जा सकेगी। जुर्माना इतना लगाया जाए जिससे पीड़ित का उपचार और पुनर्वास में सहायता मिले।
इसके अलावा सरकार द्वारा 2020 में POCSO नियम अधिसूचित किए गए। इसके जरिए स्कूलों और देखभाल घरों में कर्मचारियों के अनिवार्य पुलिस सत्यापन, बाल यौन शोषण सामग्री (पोर्नोग्राफी) की रिपोर्ट करने की प्रक्रिया, आयु-उपयुक्त बाल अधिकार शिक्षा प्रदान करने और अन्य प्रावधान शामिल किए गए।
पॉस्को की प्रमुख विशेषताएं
- बच्चों को 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों के रूप में परिभाषित किया गया है।
- यह एक नाबालिग के साथ सभी यौन गतिविधि को अपराध बनाकर यौन सहमति की उम्र को 16 साल से 18 साल तक बढ़ा देता है।
- अधिनियम यह मानता है कि यौन शोषण में शारीरिक संपर्क शामिल हो भी सकता है और नहीं भी।
- अधिनियम में यह सुनिश्चित करने के प्रावधान हैं कि एक बच्चे की पहचान जिसके खिलाफ यौन अपराध किया जाता है, मीडिया द्वारा खुलासा नहीं किया जाए।
- इस अधिनियम के तहत सूचीबद्ध अपराधों से निपटने के लिए विशेष न्यायालयों के पदनाम और विशेष लोक अभियोजकों की नियुक्ति का प्रावधान है।
- बच्चों को पूर्व-परीक्षण चरण और परीक्षण चरण के दौरान अनुवादकों, दुभाषियों, विशेष शिक्षकों, विशेषज्ञों, समर्थन व्यक्तियों और गैर-सरकारी संगठनों के रूप में अन्य विशेष सहायता प्रदान की जानी है।
पास्कों एक्ट में कानून के खास प्रावधान
- इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध में अलग-अलग सजा का प्रावधान है और यह भी ध्यान दिया जाता है कि इसका पालन कड़ाई से किया जा रहा है या नहीं।
- इस कानून की धारा चारा में वो मामले आते हैं जिसमें बच्चे के साथ कुकर्म या फिर दुष्कर्म किया गया हो। अधिनियम की धारा छह के अंतर्गत वो मामले आते हैं जिनमें बच्चों के साथ कुकर्म, दुष्कर्म के बाद उनको चोट पहुंचाई गई हो। अगर धारा सात और आठ की बात की जाए तो उसमें ऐसे मामले आते हैं जिनमें बच्चों के गुप्तांग में चोट पहुंचाई जाती है।
- 18 साल से कम किसी भी मासूम के साथ अगर दुराचार होता है तो वह पॉक्सो एक्ट के तहत आता है। इस कानून के लगने पर तुरंत गिरफ्तारी का प्रावधान है।
- इसके अतिरिक्त अधिनियम की धारा 11 के साथ यौन शोषण को भी परिभाषित किया जाता है। जिसका मतलब है कि यदि कोई भी व्यक्ति अगर किसी बच्चे को गलत नीयत से छूता है या फिर उसके साथ गलत हरकतें करने का प्रयास करता है या उसे पॉर्नोग्राफी दिखाता है तो उसे धारा 11 के तहत दोषी माना जाएगा। इस धारा के लगने पर दोषी को तीन साल तक की सजा हो सकती है।
- इस अधिनियम में यह प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति यह जनता है कि किसी बच्चे का यौन शोषण हुआ है तो उसके इसकी रिपोर्ट नजदीकी थाने में देनी चाहिए, यदि वो ऐसा नही करता है तो उसे छह महीने की कारावास और आर्थिक दंड लगाया जा सकता है।
- यह अधिनियम बाल संरक्षक की जिम्मेदारी पुलिस को सौंपता है। इसमें पुलिस को बच्चे की देखभाल और संरक्षण के लिए तत्काल व्यवस्था बनाने की जिम्मेदारी दी जाती है। जैसे बच्चे के लिए आपातकालीन चिकित्सा उपचार प्राप्त करना और बच्चे को आश्रय गृह में रखना इत्यादि।
- पुलिस की यह जिम्मेदारी बनती है कि मामले को 24 घंटे के अंदर बाल कल्याण समिति (CWC) की निगरानी में लाए ताकि सीडब्ल्यूसी बच्चे की सुरक्षा और संरक्षण के लिए जरूरी कदम उठा सके।
- इस अधिनियम में बच्चे की मेडिकल जांच के लिए प्रावधान भी किए गए हैं, जो कि इस तरह की हो ताकि बच्चे के लिए कम से कम पीड़ादायक हो। मेडिकल जांच बच्चे के माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति में किया जाना चाहिए, जिस पर बच्चे का विश्वास हो, और बच्ची की मेडिकल जांच महिला चिकित्सक द्वारा ही की जानी चाहिए।
- अधिनियम में इस बात का ध्यान रखा गया है कि न्यायिक व्यवस्था के द्वारा फिर से बच्चे पर किसी भी प्रकार का दबाव न बनाया जाए। इस नियम में केस की सुनवाई एक विशेष अदालत द्वारा बंद कमरे में कैमरे के सामने दोस्ताना माहौल में किया जाने का प्रावधान है। यह दौरान बच्चे की पहचान गुप्त रखने की कोशिश की जानी चाहिए।
- विशेष न्यायालय, उस बच्चे को दिए जाने वाली मुआवजा राशि का निर्धारण कर सकता है, जिससे बच्चे के चिकित्सा उपचार और पुनर्वास की व्यवस्था की जा सके।
- अधिनियम में यह कहा गया है कि बच्चे के यौन शोषण का मामला घटना घटने की तारीख से एक वर्ष के भीतर निपटाया जाना चाहिए।
- इस अधिनियम में अपराधों को ऐसी स्थितियों में अधिक गंभीर माना गया है यदि अपराध किसी प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस, सेना आदि के द्वारा किया गया हो।
- अधिनियम के तहत बच्चों से जुड़े यौन अपराध के मामलों की रोकथाम के साथ ऐसे मामलों में न्यायिक प्रक्रिया में हर स्तर पर विशेष सहयोग प्रदान करने की व्यवस्था की गई है।
- अधिनियम में पीड़ित को चिकित्सीय सहायता और पुनर्वास के लिए मुआवजा प्रदान करने की व्यवस्था भी की गई है।
- यह अधिनियम लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करता है।