खबरी नेशनल न्यूज नेटवर्क
वाराणसी।
Sampurnanand Sanskrit University परिसर स्थित 2.77 एकड़ जमीन के नामांतरण (राजस्व दस्तावेज में नाम चढ़वाना) प्रक्रिया पर राजा जौनपुर की तरफ से एतराज दर्ज कराया गया है। इसके लिए विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा तहसीलदार न्यायिक के न्यायालय में दाखिल नामांतरण वाद में राजा जौनपुर की तरफ से आपत्ति दर्ज कराई गई है।

नामांतरण (राजस्व दस्तावेज में नाम चढ़वाना) प्रक्रिया पर राजा जौनपुर की तरफ से एतराज दर्ज कराया गया है।


विश्वविद्यालय के उत्तर तरफ तहसील सदर के मौजा जैतपुरा के आराजी नंबर 75/1 व 75/2 के दो गाटा में 2.77 एकड़ जमीन स्थित है। राजस्व दस्तावेजों में इस भूमि पर राजा जौनपुर यादवेन्द्र दत्त दुबे पुत्र राजा कृष्ण दत्त दुबे के विधिक वारिस राजा अवनिन्द्र दत्त दुबे का नाम दर्ज चला आ रहा हैै। विश्वविद्यालय को जब पता चला कि विश्वविद्यालय की इस जमीन पर राजा जौनपुर का नाम चल रहा है। तब कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी की पहल पर कुलसचिव ने इसी भूमि पर दर्ज राजा का नाम काट कर विश्वविद्यालय का नाम राजस्व दस्तावेजों में दर्ज कराने के लिए तहसीलदार न्यायिक के न्यायालय में वाद दाखिल किया।

राजस्व दस्तावेजों में इस भूमि पर राजा जौनपुर यादवेन्द्र दत्त दुबे पुत्र राजा कृष्ण दत्त दुबे के विधिक वारिस राजा अवनिन्द्र दत्त दुबे का नाम दर्ज चला आ रहा हैै।


विश्वविद्यालय का दावा है कि उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से 1953 में भूमि, उसमें स्थित भवन, कुआं आदि का मूल्यांकन करने के बाद मुआवजा देकर अधिग्रहण कर लिया गया। साथ ही राजा यादवेन्द्र दत्त दुबे द्वारा 1959 में मंदिर व बावली आदि दान देने की भी बात कही गई है। इस बात की जानकारी होने पर राजा जौनपुर के अधिवक्ता संजय सिंह ने तहसीलदार न्यायिक के न्यायालय में आपत्ति दर्ज करायी है।

1953 में भूमि, उसमें स्थित भवन, कुआं आदि का मूल्यांकन करने के बाद मुआवजा देकर अधिग्रहण कर लिया गया।


संजय सिंह ने बताया कि राजस्व दस्तावेजों में राज परिवार का नाम दर्ज है। कुलसचिव ने नामांतरण के लिए अधिग्रहण और मुआवजा देने के संबंध में जो दस्तावेज पेश किए हैं उसमें उक्त आराजी नंबर 75/1 व 75/2 की 2.77 एकड़ भूमि का कहीं उल्लेख ही नहीं है। इस प्रकार अधिग्रहण के दस्तावेज भ्रामक हैं। इतना ही नहीं जब 1953 में जमीन का अधिग्रहण कर लिया गया तो 1959 में राजा यादवेन्द्र दत्त दुबे द्वारा दान किए जाने का कोई औचित्य ही नहीं बनता है।

कुलसचिव ने नामांतरण के लिए अधिग्रहण और मुआवजा देने के संबंध में जो दस्तावेज पेश किए हैं उसमें उक्त आराजी नंबर 75/1 व 75/2 की 2.77 एकड़ भूमि का कहीं उल्लेख ही नहीं है।

जमीन में स्थित मंदिर एक ट्रस्ट के नाम है, जिसे राजा जौनपुर द्वारा दान देने का अधिकार ही नहीं है। इतना ही नहीं दान देने का जो साक्ष्य प्रस्तुत किया गया है उसके लिए तब विधायक रहे राजा यादवेन्द्र दत्त दुबे का लेटर पैड पर लिखा पत्र दिया गया है। कोई वैधानिक दान प्रपत्र वाद में दाखिल नहीं किया गया है। इस प्रकार से जो वाद और दस्तावेज हैं, वह पूरी तरह से भ्रामक हैं।