खाना-ए-काबा की जियारत और मस्जिदे नबवी में इबादत की दिली ख्वाहिश हर मुसलमान की होती है। हज महंगा होने से खासकर मध्यम वर्गीय लोग अब उमरे पर जाना पसंद कर रहे हैं। रमजान में उमरा और खास हो जाता है। नतीजा, पूर्वांचल से आम दिनों से तीन गुना जायरीन उमरे पर गए हैं। इनमें बनारस से सबसे ज्यादा करीब तीन हजार गए हैं। जबकि मऊ, आजमगढ़ व भदोही से ज्यादा जायरीन गए
खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क
लखनऊ। खाना-ए-काबा की जियारत और मस्जिदे नबवी में इबादत की दिली ख्वाहिश हर मुसलमान की होती है। हज का सफर महंगा होने से खासकर मध्यम वर्गीय लोग अब उमरे पर जाना पसंद कर रहे हैं। रमजान में उमरा और खास हो जाता है। नतीजतन, पूर्वांचल से आम दिनों की तुलना में तीन गुना जायरीन उमरे पर गए हैं। इनमें बनारस से सबसे ज्यादा करीब तीन हजार गए हैं। जबकि मऊ, आजमगढ़ व भदोही से ज्यादा जायरीन गए हैं।
पूर्वांचल से गए 15 हजार लोग
हजयात्रा के खर्च हुए चार लाख ‚जब कि उमरा के 70 हजार से लेकर डेढ़ लाख
कोरोना काल के बाद हजयात्रा का खर्च करीब चार लाख पहुंच गया है। इसके चलते आम मुसलमान के लिए इस सफर पर जाना मुश्किल हो गया है। जबकि उमरा के लिए 70 हजार से लेकर डेढ़ लाख रुपये खर्च होते हैं। यही वजह है कि पिछले तीन साल में उमरा पर जाने वालों की तादाद 50 से 60 फीसदी बढ़ी है। पूर्वांचल भर के 10 जिलों में हर माह पांच हजार से अधिक जायरीन उमरा पर जा रहे हैं। मगर रमजान में इसमें और वृद्धि हुई है।
रमजान में जाने वालों की तायदात हुई तीन से चार गुना
ट्रेवल एजेंसी के संचालक हाजी मोहम्मद रईस अहमद और हाजी वहाब अंसारी ने बताया कि रमजान में उमरा पर जाने वालों की तादाद आम दिनों से तीन से चार गुने की वृद्धि हुई है। बनारस से हर माह करीब एक हजार जायरीन जाते हैं। मगर, रमजान में दो से तीन हजार जायरीन उमरा करने गए हैं। हालांकि, इस माह में 20 से 40 हजार रुपये खर्च बढ़ जाते हैं। उन्होंने बताया कि हज 40 से 42 दिन का होता है जबकि उमरा की प्रक्रिया 15 से 20 दिन में पूरी हो जाती है। इस वजह से भी इसका खर्च कम हो जाता है।
मक्का में रोजा रखकर इबादत करना हज के बराबर
इस्लाम के पांच अरकान में कलमा, नमाज, रोजा और जकात के बाद आखिरी हज है। हाजी मोहम्मद रईस अहमद ने बताया कि उमरा मिनी हज होता है। मगर, रमजान में उमरा करने से हज के बराबर लाभ मिलता है। इससे जायरीनों में आध्यात्मिक शुद्धि होती है।
25 फीसदी युवाओं की भी बढ़ी है तादाद
पहले हज या उमरा पर 90 फीसदी बुजुर्ग ही जाते हैं। लेकिन, इधर के कुछ साल में युवाओं की तादाद बढ़ी है। हाजी वहाब अंसारी के मुताबिक अब भी जायरीन में बुजुर्ग ज्यादा हैं लेकिन युवाओं की तादाद 20 से 25 फीसदी बढ़ी है।