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खबरी की स्पेशल रिर्पोट

अंतिम दो चरणों में BJP के गठबंधन सहयोगियों का टेस्ट, जीतने के साथ जिताने की भारी चुनौती

यूपी में अंतिम दो चरणों में जिन 27 लोकसभा सीटों पर चुनाव होना है, उसमें से 24 सीट पर बीजेपी और दो सीट पर अपना दल (एस) और एक सीट पर राजभर की पार्टी के प्रत्याशी मैदान में है. वहीं, सपा 22 सीट पर उम्मीदवार उतार रखे हैं तो चार सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशी किस्मत आजमा रहे हैं।

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लोकसभा चुनाव के अंतिम दो चरणों का मतदान बाकी है और इन चरणों में पूर्वी उत्तर प्रदेश की सीटों पर मतदान होना है। अनुप्रिया पटेल से लेकर संजय निषाद और ओमप्रकाश राजभर तक, बीजेपी के गठबंधन सहयोगी इसी इलाके में पकड़ रखते हैं । पूर्वांचल की ही वाराणसी सीट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सांसद हैं और इस बार भी वहीं से चुनाव मैदान में हैं तो गोरखपुर भी यूपी के इसी क्षेत्र में आता है जो सीएम योगी आदित्यनाथ की कर्मभूमि रहा है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के देश और प्रदेश की सियासत के दो सबसे बड़े चेहरों का नाता जिस पूर्वांचल से है, उस इलाके का चुनाव सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है ।

दोस्ती का होगा इम्तिहान‚अपनी–अपनी जाति के वोटबैंक पर पकड़ की भी परीक्षा

इन चरणों में बीजेपी और उसके सहयोगियों के बीच दोस्ती का ‘इम्तिहान’ भी होगा. एनडीए के घटक अनुप्रिया पटेल की अगुवाई वाले अपना दल (सोनेलाल), ओमप्रकाश राजभर की अगुवाई वाले सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) और संजय निषाद की निषाद पार्टी का प्रभाव भी इसी पूर्वांचल में है. अंतिम दो चरण के चुनाव में इन नेताओं के अपनी जाति के वोटबैंक पर पकड़ की भी परीक्षा होगी । लोकसभा चुनाव के अंतिम दो चरण बीजेपी के लिए ‘दोस्ती के इम्तिहान’ के साथ ही अपने सहयोगियों की शक्ति की पहचान करने के लिहाज से भी अहम है. साल 2014 के आम चुनाव से एनडीए की भरोसेमंद साथी अपना दल (एस ) की अनुप्रिया पटेल हों, अपने बयानों से सुर्ख़ियों में रहने वाले ओम प्रकाश राजभर हों या संजय निषाद जैसे सहयोगी या फिर उपचुनाव हारने के बाद भी योगी मंत्रिमंडल में मंत्री बनाए गए दारा सिंह चौहान हों, सबकी परीक्षा इन्हीं दो चरणों में में ही होनी है।

अन्तिम दो चरणों में इन सीटों पर होना है मतदान

लोकसभा चुनाव के अंतिम दो चरणों में इलाहाबाद, फूलपुर, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, अम्बेडकरनगर, श्रावस्ती, बस्ती, संतकबीर नगर, डुमरियागंज, लालगंज, आज़मगढ़, जौनपुर, मछलीशहर, भदोही में 25 अप्रैल को मतदान होना है। वाराणसी, ग़ाज़ीपुर, बलिया, चंदौली, राबर्ट्सगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, महाराजगंज, मिर्ज़ापुर, घोसी, सलेमपुर में अंतिम चरण में 1 जून को मतदान होना है। इनमें से ज़्यादातर वो सीटें हैं जिनके नतीजे बीजेपी और उसके बंधन सहयोगियों की दोस्ती का टेस्ट माने जा रहे हैं। ये दल अपने समाज के वोट बीजेपी को ट्रांसफ़र कर पाते हैं कि नहीं, नतीजों से इसका भी पता चलेगा।

12 सीटों पर कुर्मी मतदाता‚कुर्मी वोटरों के रुख से तय होगा अनुप्रिया का प्रभाव

अपना दल (एस) के साथ बीजेपी के रिश्ते अन्य सहयोगियों के मुकाबले अधिक सहज रहे हैं. अपना दल (एस) की नेता अनुप्रिया पटेल मंत्री होने के नाते बीजेपी के मंचों पर भी सबसे ज्यादा दिखाई पड़ती हैं। 14 मई को प्रधानमंत्री के नामांकन में एनडीए ने शक्ति प्रदर्शन किया था और उसमें अनुप्रिया भी थीं। जिन सीटों पर मतदान होना है उनमें करीब 12 सीटों पर कुर्मी मतदाता अच्छी तादाद में हैं।

पिछले वोटिंग पैटर्न की बात करें तो कुर्मी वोटर किसी एक के साथ नहीं

पिछले चुनाव के वोटिंग पैटर्न की बात करें तो कुर्मी वोटर किसी एक के साथ नहीं रहा है। विधानसभा चुनाव में सिराथु सीट से यूपी के डिप्टी सीएम केशव मौर्य के खिलाफ चुनाव जीतने वाली अनुप्रिया पटेल की बहन पल्लवी पटेल की जीत इसी ओर संकेत करती है. वहीं, कौशांबी, मिर्ज़ापुर जैसी सीट पर कुर्मी मतदाताओं ने अपना दल (एस) और बीजेपी के पक्ष में वोट किया था। ऐसे में अनुप्रिया पटेल की अपनी सीट मिर्जापुर के साथ ही अपना दल के खाते में गई दूसरी सीट रॉबर्ट्सगंज और फूलपुर, बस्ती, प्रतापगढ़ में भी कुर्मी वोटरों के रुख पर नजरें होंगी।

‘कभी पास, कभी दूर’रहने वाले ओम प्रकाश राजभर के उनके सजातीय वोट पर पकड़ की परीक्षा भी दो चरणों में

एनडीए गठबंधन में ‘कभी पास, कभी दूर’ की स्थिति में रहने वाले सुभासपा के ओम प्रकाश राजभर के अपने सजातीय वोट पर पकड़ की परीक्षा भी इन दो चरणों में होगी. राजभर मतदाता घोसी, लालगंज (सु), आजमगढ़, गाजीपुर में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. एनडीए में फिर से वापसी के बाद तमाम अगर-मगर, लंबे इंतजार के बाद ओम प्रकाश राजभर न सिर्फ योगी सरकार में मंत्री बनाए गए, बल्कि उन्हें भारी-भरकम विभाग भी दिया गया. अब राजभर के सामने घोसी से अपने बेटे अरविंद राजभर को जिताने, बाकी सीटों पर राजभर वोट बीजेपी को ट्रांसफर कराने की चुनौती है. घोसी से सपा ने राजीव राय के रूप में मजबूत उम्मीदवार उतारा है जिससे राजभर के लिए इस सीट पर लड़ाई आसान नहीं होगी।

दारा सिंह चौहान को हार के बाद भी मंत्री बनाना इसके पीछे नोनिया वोट का रहा ये गणित

निषाद पार्टी के प्रमुख डॉक्टर संजय निषाद योगी कैबिनेट में मंत्री हैं. बीजेपी ने संजय निषाद के बेटे को संतकबीर नगर से चुनाव मैदान में उतारा है। इस इस चुनाव को संजय निषाद के लिए भी अपनी प्रासंगिकता साबित करने का चुनाव कहा जा रहा है.। संजय किस तरह से निषाद वोट अपने सहयोगी बीजेपी को ट्रांसफर करते हैं, इसकी भी परख होगी. पूर्वांचल में नोनिया (चौहान) समाज के मतदाताओं की संख्या 3% के करीब है। बीजेपी ने दारा सिंह चौहान को फिर से वापस लिया और उपचुनाव में हार के बाद भी मंत्री बनाया तो इसके पीछे नोनिया वोट का ये गणित ही था। अंतिम चरण में बीजेपी के इस फैसले की भी परीक्षा है।

पूर्वांचल की सियासी लड़ाई में देखना है कि किसका किला बचता है और किसका डूबता है ?

बीजेपी 2019 में मोदी लहर में भी पूर्वांचल के इलाके में अपना एकछत्र राज कायम नहीं कर सकी थी। सपा-बसपा गठबंधन के चलते पूर्वांचल इलाके की आधा दर्जन सीटों पर बीजेपी को मात खानी पड़ गई थी। पूर्वांचल क्षेत्र की 27 लोकसभा सीटों में से बीजेपी 18 सीटें ही जीत सकी थी जबकि 2 सीटें सहयोगी अपना दल (एस) को मिली थी। सपा-बसपा गठबंधन 7 सीटें जीतने में कामयाब रही थी, जिसमें 6 सीटें बसपा और एक सीट सपा को मिली थी।हालांकि, सपा ने बाद में जीती आजमगढ़ सीट को गंवा दिया था. ऐसे में अब पूर्वांचल की सियासी लड़ाई में देखना है कि किसका किला बचता है और किसका नहीं?

छठे चरण में UP की 14 और 7वें में 13 सीटों पर मतदान

लोकसभा चुनाव के छठे चरण में उत्तर प्रदेश की 14 सीटों पर 25 मई को मतदान है तो सातवें चरण में 13 सीटों पर एक जून को वोटिंग है. छठे चरण में सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, फूलपुर, प्रयागराज, अंबेडकरनगर, श्रावस्ती, डुमरियागंज, बस्ती, संत कबीरनगर, लालगंज, आजमगढ़, जौनपुर, मछली शहर, भदोही में चुनाव है. सातवें चरण में वाराणसी, गोरखपुर, मिर्जापुर, चंदौली, घोसी, गाजीपुर, महराजगंज, कुशीनगर, देवरिया, बांसगांव, सलेमपुर, बलिया और रॉबर्ट्सगंज सीट पर एक जून को मतदान है.

ओबीसी के इर्द-गिर्द सिमटी है पूर्वांचल की सियासत

पूर्वांचल की सियासत ओबीसी के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. माना जाता है कि इस पूरे इलाके में करीब 50 फीसदी से ज्यादा ओबीसी वोट बैंक जिस भी पार्टी के खाते में गया, जीत उसकी तय हुई. 2017-2022 के विधानसभा और 2014 व 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पिछड़ा वर्ग का अच्छा समर्थन मिला. नतीजतन केंद्र और राज्य की सत्ता पर मजबूती से काबिज हुई . ऐसे में बीजेपी और सपा दोनों ही पार्टियां ओबीसी वोटों का साधने के लिए तमाम जतन इस बार किए हैं. ऐसे में बसपा ने भी पूर्वांचल के सियासी समीकरण को देखकर अपने उम्मीदवार उतारे हैं।

सपा के कोटे की 22 लोकसभा सीटों में से 14 सीट पर गैर-यादव ओबीसी के प्रत्याशी तो चार सीट पर दलित उम्मीदवार

सपा ने अपने कोटे की 22 लोकसभा सीटों में से 14 सीट पर गैर-यादव ओबीसी के प्रत्याशी उतार रखा है तो चार सीट पर दलित उम्मीदवार हैं। इसके अलावा एक यादव, एक मुस्लिम और एक ब्राह्मण और एक राजपूत प्रत्याशी मैदान में है. कांग्रेस ने अपने कोटे की चार सीटों में दलित-ओबीसी-भूमिहार और ठाकुर एक-एक उम्मीदवार है. इस तरह सपा प्रमुख अखिलेश यादव पीडीए फॉर्मूले को तहत सियासी बिसात पूर्वांचल में बिछाया है. मायावती के सियासी कमजोरी का पूरा फायदा इंडिया गठबंधन उठाने की कोशिश में है।

PM मोदी की निगाहें लगातार तीसरी बार जीतने पर

वहीं, पूर्वांचल में बीजेपी ने ओबीसी जातीय आधार वाले दलों के साथ हाथ मिलाकर सियासी समीकरण दुरुस्त करने की दांव चला है. पीएम मोदी खुद काशी के रणक्षेत्र में हैट्रिक लगाने के लिए उतरे हैं तो सीएम योगी का गृह जनपद गोरखपुर है. बीजेपी अपने दिग्गज चेहरों के साथ सहयोगी दलों की भी जमीन परखी जाएगी. मिर्जापुर और रॉबर्ट्सगंज से अपना दल (S) चुनाव लड़ रही है. वहीं, घोसी में सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर अपने बेटे अरविंद राजभर को चुनाव लड़ा रहे हैं. ऐसे में देखना है कि जातीय बिसात पर खड़ी पूर्वांचल की सियासी जमीन पर किसका पलड़ा भारी रहता है।

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