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सलिल पांडेय

खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क

अभी तक तो बाबा के बुलडोजर का था हाई सेंसेक्स, दूसरे प्रदेश कर रहे थे नकल, अब हाय-तौबा क्यों?

◆यूपी में बवाल है, सिर फुटौव्वल है। रविवार को होने वाली हाई लेविल समीक्षा के पहले शोर मचा है कि बाबा के ऑफिसर, थानेदार, तहसीलकर्मी आदि जनप्रतिनिधियों को तवज्जह नहीं दे रहे थे, जो पहली ही नज़र में खारिज करने योग्य आरोप है।
◆बाबा के जमाने में चपरासी से लेकर ऑफिसर तक का नियुक्तिपत्र जनप्रतिनिधि बांटते थे। असली मुख्य अतिथि यही लोग होते थे जबकि IAS, IPS और PCS तक के ऑफिसर सेकेंड लाइन में रहते थे।
◆जितनी वीडियोकांफ्रेंसिंग बाबा करते थे, उसमें अधिकांश में जनप्रतिनिधि भी शामिल होते थे। इस तरह जनप्रतिनिधियों को तवज्जह न देने का कारण नहीं माना जा सकता ।
◆वस्तुस्थिति यह है कि बहुतेरे जनप्रतिनिधि राजनीतिक कम व्यापारी की भूमिका में ज्यादा हो गए थे। अप्रत्यक्ष रूप से ठीका, परमिट में रुचि, कमीशन पर विकास निधि के वितरण की वजह से खुद ही अधिकारियों से मन ही मन डरे रहते थे। उनके चहेतों पर आंच न आए लिहाज़ा आमजन की जायज समस्याओं से मुख मोड़ लेते थे।
◆ज्यादातर जनप्रतिनिधियों में मुख्य अतिथि बनने, माला पहनने, फीता कांटने, कई कई लक्ज़री गाड़ियों के काफ़िले में चलने की आदत हो गई थी। प्रबुद्ध से प्रबुद्ध व्यक्ति भी कुछ सही बात बोल दे तो उसे खुद या उनके चहेते तत्क्षण बेइज्जत कर देते थे।
◆अगर ऐसा नहीं है तो जनप्रतिनिधियों, पार्टी के बड़े नेताओं की संपत्तियों की सूक्ष्म जांच हो जाए, कार्यदायी संस्थाओं से ठीकेदारों की सूची और उनपर वरद हस्त का लेखाजोखा ले लिया जाए तो स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। जो बेदाग पाए जाएं, उन्हें छोड़ दागी के खिलाफ भी कार्रवाई तो होनी चाहिए।

★दूसरे कारण ?

◆आए दिन कोई न कोई उत्सव करना और उसमें आम जनता से लेकर पार्टी के छोटे कार्यकर्ताओं से धन खर्च कराना भी घातक हो गया।
◆मसलन अयोध्या मंदिर निर्माण के समय घर-घर से रुपया मांगना लोगों को अखर रहा था। कोई हिसाब किताब नहीं। डिब्बा लेकर धनसंग्रह का अभियान चला। बड़े ऑफिसरों से बड़ी राशि और बड़े व्यापारियों से भी बड़ी राशि ली गई। मीडिया रिपोर्टों में चंदे के धन के दुरुपयोग की खबर आने लगी तो लोगों की आस्था पर चोट पहुँची।
◆इसके बाद मन्दिर लोकार्पण के वक्त अक्षत तथा जिलों-जिलों में होने वाले समारोहों के लिए दीया-बाती, थाल आदि का संग्रह किया जाने लगा। आमजनता खुद ही समस्याग्रस्त स्थिति में थी। उसे यह सब नागवार लगा।
◆अयोध्या एवं काशी में समारोहों की अधिकता एवं वीआइपी दौरों से आम जनता परेशान हो रही थी।
◆चैत्र महीने में रामनवमी जुलूसों के लिए स्कूटी रैली, मोटर साइकिल रेली आदि के लिए भी धन मांगा जाने लगा। जो चुनाव पूर्व अतिरेक की श्रेणी में चला गया।
◆इन कार्यक्रमों में घर-घर की महिलाओं को जब उतारा गया तब इन महिलाओं में बहुत सी ऐसी महिलाएं थीं जो पारिवारिक दायित्वों को तिलांजलि देकर पूरा का पूरा समय इसी में देने लगीं। घर-घर में असन्तोष फैलने लगा। जो चुनाव में दिख गया।

◆हाई लेविल के कारण

आप नेता अरविंद केजरीवाल ने तर्क सहित तथ्य रखा कि चुनाव के बाद मुख्यमंत्री हटा दिए जाएंगे लेकिन ‘गारंटी के दौर’ में यहां तक कहा गया कि वर्ष ’29 में भी पीएम मोदी जी होंगे लेकिन यह ‘गारंटी’ नहीं दी जा सकी कि योगी आदित्यनाथ को नहीं हटाया जाएगा।
◆चुनाव पूर्व अयोध्या में लोकार्पण तथा चुनाव के दौर में बाबा विश्वनाथ मंदिर में पूजनके वक्त सबसे बड़े प्रदेश के मुख्यमंत्री का साथ-साथ न चलने और अगल-बगल न बैठने के फोटो सार्वजनिक होने से यूपी के लोगों को तकलीफ़ हो रही थी क्योंकि मुख्यमंत्री तो सच में एक सिद्ध आश्रम के महंत हैं।
◆भगवान श्रीराम की उंगली पकड़ कर तथा पीठ पर बैठाना लोगों की आस्था को आहत को आहत कर रहा था।
◆धर्मग्रँथों में भगवान को पीठ न दिखाने का विधान है। आस्थावान लोग इसलिए मंदिरों से पीठ करके नहीं निकलते हैं। पीठ वाले फोटो पर प्रतिबंध होना चाहिए था।

◆पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, हिमांचल, राजस्थान आदि में भी अपेक्षित सफलता नहीं मिली। यहां के लिए भी तो कोई जिम्मेदारी लेगा।

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