सलिल पांडेय

◆खुद द्वारा ठगी ‘चाणक्य बुद्धि’ और की ‘जघन्य महापाप’ लगता है।

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धोखा देना नहीं बल्कि धोखा खाना सीखना चाहिए।
◆धोखेबाज कुछ सांसारिक लाभ ले जाएगा लेकिन जिसे धोखा देता है उसे देवत्व की श्रेणी में खड़ा कर देता है।
◆क्योंकि सृष्टि में सबसे ज्यादा धोखा देवता ही खाता है।
◆इसीलिए देवता की पूजा होती है।
◆धोखा देने वाला नज़र मिला कर बात करने की क्षमता खोने लगता है।
◆ढाई घर चलने वालों पर शनि भगवान की भी नज़र में पड़ जाती हैं।
◆शनि भगवान को लगता है कि मेरा अधिकार दूसरा कैसे इस्तेमाल कर रहा है?
◆फिर हिसाब-किताब शनि भगवान द्वारा ही होना ही होना है।
◆आज नहीं तो कल हिसाब हो जाएगा ही।
◆शनि सहित ढेरों भगवान के आगे मत्था टेकने के बावजूद ‘इस टाइप की पंक्तियों’ को हल्के में और ‘बेकार की बात’ मानकर ‘धोखा’ और ‘ठगी’ से अलग नहीं होते बनता।
◆खुद द्वारा ठगी ‘चाणक्य-बुद्धि’ समझ कर गर्व होता है।

◆दूसरे द्वारा की गई ठगी ‘जघन्य महापाप’ लगता है।

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