प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।
त्रिनाथ पांडेय
चकिया‚चंदौली। शारदीय नवरात्रि के पहले दिन से ही नवमी तक श्रद्धालुगण बहुत दूर दूर से आकर कोट मां भगवती देवी मंदिर दरबार में माला फूल व नारियल चुनरी प्रसाद चढ़ा कर और धूप दीप जलाकर मत्था टेक कर अपनी मुरादे पूरी करने की मन्नते और खुशियों से झोली भरने की बिनती कर के सभी लोग मां भगवती देवी का आशीर्वाद लेते है।
चन्द्रप्रभा नदी के तट पर स्थापित कोट मां भगवती देवी का मंदिर शक्त्ति उपासना का एक प्रमुख केंद्र
तहसील मुख्यालय चकिया से मात्र 5 किलोमीटर दूर सिकन्दरपुर गांव में चन्द्रप्रभा नदी के तट पर स्थित राजा बलवन्त सिंह के किले (आरामगाह ) के उपर स्थापित कोट मां भगवती देवी का मंदिर शक्त्ति उपासना का एक प्रमुख केंद्र के रूप में स्थापित है। जहा तंत्र – मंत्र के ज्ञाता विद्वान ज्ञानी पंडित दोनों शारदीय एवम वासंतिक ( चैत्र ) नवरात्रो के अलावा हमेशा साधनारत रहते है।
मां कोट भवानी की ऐतिहासिकता की गाथा सैकड़ो वर्ष पुरानी
मां कोट भवानी की ऐतिहासिकता की गाथा सैकड़ो वर्ष पुरानी है। मां भगवती श्रद्धा व विस्वास की प्रतिमूर्ति है। लोगो का मानना है कि सच्चे मन से मांगी गयी मुरादे मां अवश्य पूरी करती है। मां के दर्शन मात्र से ही मनुष्य के सारे कष्ट स्वतः नष्ट हो जाते है। पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा बलवन्त सिंह वर्ष 1752 ई0 में शक्त्ति पीठ मां भगवती देवी की स्थापना नीम के पेड़ वाले चबूतरा पिंडी के रूप में की गई थी। मां की पूजा वर्षो तक की जाती रही। इस कोठी से सिकंदर शाह नामक जागीर राजा बलवन्त सिंह का लगान वसूली इस श्रेत्र का किया करता था।
काशी नरेश के आरामगाह में स्थापित है माँ की प्रतिमा
उस समय सिकन्दरपुर का प्राचीन नाम दाशीपुर था। मंदिर के वर्तमान पुजारी / एवं ग्रामीण बताते है कि 1861 ई0 में महाराज साहब बहादुर काशी नरेश ( राजा ईश्वरी प्रसाद सिंह ) द्वारा स्थित आरामगाह ( किला ) प्रांगण में कोट मां भगवती देवी मंदिर का निर्माण कराकर मंदिर के पूजा पाठ राग भोग एवं सर सफाई व मरम्मत व देख भाल कार्य हेतु पुजारी / प्रबंन्धक के रूप में रामरतन पाठक निवासी सिकन्दरपुर ( दाशीपुर ) को नियुक्त करके सुपुर्द कर दिये। बीच- बीच मे महाराजा साहब का आना जाना लगा रहता था। फिर धीरे धीरे कोठी पूरी तरह से ध्वस्त हो गई थी।। उसी समय से वर्तमान पुजारी / प्रबंन्धक के पूर्वज रामरतन पाठक के मरणोपरांत ,ब्रम्हा पाठक के बाद अन्तु पाठक के बाद वर्तमान पुजारी / प्रबंन्धक नन्हे पाठक द्वारा सन 1979 ई0 में मंदिर का जीर्णोद्वार जन सहयोग से कराये और उनके मरणोपरांत वर्तमान पुजारी / प्रबंन्धक विनय पाठक ने सन 2000 ई0 में उक्त भूमि आ0 न0 653 रकबा 0,465 हे0 भूमि प्रांगण में दो कमरे मकान पुजारी कक्ष का निर्माण रहने हेतु अपने निजी धन से कराया ।
शरारती तत्वों के द्वारा की गई थी मूर्ति खंडित‚पुनः हुई स्थापना
सन 2009 ई0 में देवी मंदिर का भब्य जीर्णोद्वार जन सहयोग से विनय पाठक द्वारा 2012 में पूर्ण रूप से निर्मित हुआ व सन् 2020 ई0 में मंदिर के आगे भभ्य बरामदे व हवन कुण्ड के चबूतरे का निर्माण जन सहयोग से कराया गया । दिनांक 03/06/2022 को रात्रि में मां भगवती देवी जी का कुछ शरारती अराजक तत्वों द्वारा मूर्ति खंडित कर दिया गया था।पुनः मां भगवती देवी जी का नई मूर्ति का स्थापना दिनांक 13/06/2022 को जन सहयोग से कराया गया।मूर्ति की स्थापना पंडित आचार्य कैलाश दुबे जी के नेतृत्व में विधि विधान से सिकंदरपुर गांव के ही पूजा में अनिल रस्तोगी, निरज केशरी, रामसूरत प्रजापति,पन्ना यादव,राजाराम यादव,अपने पत्नी के साथ संकल्पित होकर सम्मिलित हुए।
इनके द्वारा किया जाता है पूजा पाठ का देख रेख
पूजा पाठ का देख रेख राजीव पाठक,संजय पाठक,शिवानंद पटेल,चंद्रमोहन पांडेय, चंद्रजीत यादव,कन्हैयागुप्ता,रमेश विश्वकर्मा,हीरा यादव, राजुगुप्ता, संतोष जायसवाल,विजय केशरी, बंधुदास केशरी, लोलारक यादव,अरुण जायसवाल सहित अन्य लोग व मंदिर के पुजारी/प्रबंधक विनय पाठक के द्वारा संपन्न हुआ।
यहा कोट मां भगवती देवी की शक्त्ति की कई कथाएं है मौजूद पहली कथा
एक सच्ची घटना जिसका जिक्र आज भी सिकन्दरपुर वासी करते हैं सन 1960ई0 में कुछ बाहरी चोर खजाने में सेंध लगाने की कोशिश किये । गांव के दर्शनिया भुल्लनराम को स्वप्न में मंदिर में चोरों के घुसे होने की जानकारी मिली तो भुल्लनराम ने पहले मंदिर के पुजारी अन्तु पाठक व गांव के नागरिकों को एकत्रित कर चोरो के मंसूबो पर पानी फेर दिया। रात्रि भर मां भगवती देवी जी ने उन चोरो को उसी स्थान पर अंधा बना कर भटकने पर मजबूर कर दिया।
दूसरी कथा जिससे आस्था और हुई प्रबल
एक दूसरी घटना सन 1965ई0 में गांव के कुम्बर माली को मां ने स्वप्न में मंदिर के नीचे खजाने की जानकारी दी मंदिर के पिछले गुप्त दरवाजे से खजाने में रखे चॉदी के सिक्के जेवरात को एक मुठ्ठी उठाने को कहा लेकिन धन देख कर कुम्बर माली के मन मे लालच आ गयी और अधिक उठाने की बात सोचने लगा और उसने अधिक धन उठाने लगा । जिससे मां क्रोधित हो गयी और उसी समय असंख्य भौरे बनकर उसे काटने लगी। कुम्बर माली मात्र एक तलवार लेकर ही बाहर आया ।और घर पहुचने पर अपाहिज हो गया ।
तीसरी घटना जिससे हुई थी माँ की भृकुटी टेढ़ी
एक तीसरी घटना सन 1972ई0 में गांव के ही कुछ शरारती तत्वों ने मंदिर के रास्ते मे शीशे का टुकड़ा रख दिये थे। जिससे नियमित दर्शनार्थी चोटिल हो गये। मां की भृकुटी थोड़ी टेढ़ी हुयी। जिसका नतीजा यह हुआ कि उन शरारती तत्वों के बस्ती में हैजा फैल गया। जिससे कई लोगो की जान जाने की नौबत होने लगी तब मां की पूजा करने व बिनती करने पर बस्ती में शांति हुई।
चौथी घटना जिससे लोगो की आस्था और हुई प्रबल
चौथी घटना मंदिर के मुख्य दरवाजे पे गांव के ही कुछ मनबढ़ लोग द्वारा ताला बंद कर दिए जिससे मां भगवती देवी जी का आरती,पूजा, राग, भोग रुक गया।तभी मां के प्रकोप से उस व्यक्ति का 24 घंटे के अंदर दाहिना हाथ में तीन जगह टूट गया था और एक माह के अंदर ही दाहिना पैर भी टूट गया तभी से गांव के आस पास के लोगो में मां के प्रति आस्था और बढ़ गई।आज भी मंदिर के प्रांगड़ का सुंदरीकरण व टीन सेट व सामुदायिक शौचालय, विवाह मंडप व विधुतीकरण व रैन बसेरा, चाहदीवारी व बृच्छरोपण की आवश्यकता है।