पालिका अध्यक्ष के नजदीकियों तथा परिचितों के यहां लगा रहीं चक्कर
मुंह में ट्यूबबेल की डिस्चार्ज क्षमता की तरह आ रहा पानी-
अध्यक्ष को सन्देश देना होगा जनता को जवाबदेही उनकी है
जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्रमलाई के मटकों पर नजर धँसाएं हुई हैं खूंखार बिल्लियां
मिर्जापुर से सलिल पांडेय की रिर्पोट
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खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क
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मिर्जापुर। मार्ग में कांटों ही कांटों पर लालडिग्गी स्थित पालिका कार्यालय के चौखट पर पहुंचे नगर के प्रथम 'लाल' (नागरिक) श्याम सुंदर केसरी की ओर ललचाई दृष्टि से अनेक जुगाड़ू कर्मचारी इस तरह देख रहे हैं कि उनके भाग्य से सिकहर टूटे और वे आंख बंद कर पूरी की पूरी मलाई गटक जाएं । इसके लिए कुछ लहगर सीधे, तो कुछ अ-सीधे यानी दाएं-बाएं रहने वालों और कुछ पार्टी के बड़े नेताओं एवं राष्ट्रवादी संगठन के कार्यालयों की धूल माथे पर लगाए यह साबित करने में लगे हैं कि वही असली राजकुमार हैं।
सर्वाधिक मिट्टी-गिट्टी तक पचा जाने की कोशिश में
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पालिका में गहरी पाचन क्षमता वाले लोक निर्माण विभाग में भाग्य अजमाने की घात में लगे हैं। यहां बंधे-बंधाएं कमीशन की चाशनी मिलती है। चूंकि सड़कों के निर्माण में अधिक पैसा आता है, इसलिए कतिपय कर्मचारी मिट्टी-गिट्टी को काजू की बर्फी समझ कर मुंह मीठा करना चाहते हैं।
नम्बर दो पर टैक्स विभाग
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यहां आए दिन घरों में नाम चढ़ाने का क्रम अनवरत चलता है, लिहाजा सही सलामत फाइलों में 10 अंकधारी रिश्वत आसानी से बिना 'चूँ-चां' के मिल ही जाती है, लिहाज़ा हर पल जेब गर्मागर्म रहने का सिलसिला बना रहता है। इसी विभाग में कर-निर्धारण का भी दायित्व है, लिहाजा पहले पहाड़ की तरह कर-निर्धारण की धमकी भरा 'आतंकवादी खत' भेज कर फिर उसे मिली-जुली सरकार की तरह प्रेम-पत्र में बदल दिया जाता है। उदाहरण के रुप में पहले 5 लाख का कर-निर्धारण की नोटिस जाएगी, फिर धड़ाम से शेयर मार्केट की तरह मामला हो जाएगा फिर और 50 हजार पर मैच-फिक्सिंग हो जाएगी और कम से कम एक लाख लेकर 'श्री लखपतिजी' बनने की तमन्ना तो पूरी हो ही जाती है। ऐसा तो पिछली बार तो जमकर हुआ। एक चर्चित बाबू तो जमकर दलाली करता रहा।
जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्र
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इसमें पद पाते कतिपय कर्मी बम्बईया फ़िल्म के डबल रोल अपनाने लगते हैं। प्रथम तो वे 'डोम' के नक्शे-कदम पर चलते हैं। नगर में किसी के मरने पर जैसे श्मशान घाटों के मल्लाह के मुंह से 'वाह-वाह' निकलता है, उसी तरह कतिपय कर्मियों के मुंह से भी यही दो शब्द निकलते हैं। मृत्यु प्रमाणपत्र देने में न्यूनतम दो-चार हजार का सौदा तो ईमानदारी का सौदा मान लिया गया है जबकि मरने वाले के घर में कोई विवाद या विलंब है तो लालच और बढ़ जाता है। पिछले दिनों इसकी शिकायत शासन तक गई थी तब जिला प्रशासन को अपना हंटर चलना पड़ा था। इस मामले में साढ़े साती शनि की तरह कलेक्ट्रेट के एक विवादित लिपिक की तरह नजर रहती थी लिहाजा कोई शिकायत करता था तो लिपिक उसे फोन कर हड़काता था और कहता था कि प्रशासन उसकी मुट्ठी में है लिहाजा उसके चहेतों का बाल बांका नहीं हो सकता। इसी तरह जन्म प्रमाण पत्र में गरीब परिवारों की माताओं की अछ्वानी तथा अन्य पौष्टिक पदार्थों पर किन्नरों की तरह कतिपय कर्मी डाका डालते रहे है। कलेक्ट्रेट कर्मी का इतना जुगाड़ है कि उसने तहसील की जगह मुख्यालय पर पोस्टिंग हासिल की है । वरिष्ठ लोगों को धकेल कर तहसीलों में भिजवाने में सफल होने के कारण दिमाग सातवें आसमान पर है। इस पर DM/कमिश्नर का ध्यान अपेक्षित है।
पालिकाध्यक्ष का दायित्व
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चूंकि 10 सालों से मनमानी-घरजानी सिस्टम के चलते पालिका रसातल में जा रही है इसलिए उसे पुनर्प्रतिष्ठित करने के लिए 'सुंदर दृष्टि' अपनानी होगी। बैठकबाज, गुटबाज, दागी, निलंबित, धौंसबाज तथा पूर्व में मलाईदार पदों पर रहे लोगों से तौबा-तौबा करना पड़ेगा। कोई भी परिवर्तन से पूर्व अधिकारियों की राय उचित रहेगी। भोले-भाले लोगों को परेशान करने वाले बेईमानों के बजाय देवतुल्य जनता का ध्यान रखना पड़ेगा। रिटायर्ड कर्मचारियों के लगातार दफ्तर के विभिन्न सीटों पर आकर पहले की तरह बैठकर 'दादागिरी' पर रोक लगनी पड़ेगी, क्योंकि ऐसे लोग यह जनता को बताते हैं कि वे अभी भी कर्मचारी हैं। इसमें बदनाम कुछ कर्मियों को नौ-लाख की हवेली का मेहमान बनाने की कार्रवाई करनी होगी।
मरे कुत्ते और मरकर सड़ी बिल्लियों के यार!
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पालिका में कुछ ऐसे लहगर हैं कि जो अपने से ऊपर लिपिकों को नहीं बल्कि अधिकारियों को आंख मरे कुत्तों तथा बिल्लियों के बल पर दिखाते हैं। ऐसे ही एक-दो रिटायर्ड कर्मचारियों ने जनता के भारी विश्वासमत से जीते एक पूर्व अध्यक्ष के घर पर कूड़ा-कचरा तो फिकवाया ही और साथ में उनके घर पर मरा कुत्ता एवं मरकर सड़ी बिल्लियां टँगवां दी। जिससे आहत होकर उन्होंने इस्तीफा दे दिया। ऐसी ही घटना 1992 के आसपास की भी है जब अध्यक्ष के घर पर कूड़ा फिकवा दिया। यह सब अंधेरगर्दी सिर्फ पूर्व अरुण कुमार दुबे के साथ करने की हिम्मत सब खो चुके थे। मतलब जो सख्ती दिखाएगा उसके आगे ऐसे लोगों की हिम्मत खुद ही जिन्दी नहीं बल्कि मृत बिल्लियों जैसी हो जाती है।
नटवरलाल के बाप भी हैं पालिका में
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एक-दो कर्मचारी दावा करते हैं कि वे महा ठगराज नटवरलाल के बाप है। मौका पाते नियम-विरुद्ध कार्य कराने में महारत हासिल है। वे इस फिराक में रहते हैं कि ऐतिहासिक घण्टाघर बेच दें। पालिका की दुकान अपने परिजनों के नाम ले भी चुके हैं। जबकि नियमतः पालिका कर्मी खुद या परिवार को लाभ नहीं पहुंचा सकता। इसकी जांच कर विधिक कार्रवाई की जानी चाहिए।