सलिल पांडेय

खोदते रहें पहाड़ निकलेगी चूहिया!

मिर्जापुर। ‘खोदा पहाड़ निकली चूहिया’ मुहावरे का अर्थ ‘अथक प्रयास के निरर्थक परिणाम’ से जुड़ा है। कथा है कि चोरों का एक गिरोह चोरी का माल पहाड़ की गुफा में छुपा देता था। दूसरे अभियान में जाते वक्त एक चोर चौकीदारी करता था। रात में उसे घुंघुरू की आवाज़ आती थी। उसने सरदार को बताया। सरदार को लगा कि इसे वहम है। दूसरे दिन दूसरे चोर को वहां तैनात किया गया। उसे भी घुंघुरुओं की आवाज आई। चौकीदार बदलते गए लेकिन सभी ने घुंघुरू की आवाज़ आने की बात कही। अंत में पहाड़ खोदा गया तो एक चूहिया निकली जिसके पैर में घुंघुरू फंसा था। उसी की आवाज़ आती थी।

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बहुत साफ़ है सीसी टीवी का फुटेज पर पहचान क्यों नहीं हो पा रही?

पुलिस द्वारा जो फुटेज जारी किया गया है, वह तो बहुत साफ़ है। अपराधियों पर नज़र रखने वाली पुलिस को तो पल भर में उसे पहचान लेना चाहिए था लेकिन अगर पहचान नहीं हो रही तो ‘दाल में काला’ से इनकार नहीं किया जा सकता।

ठीकेदारों की टीम पर नज़र रखनी होगी

आनलाईन टेंडर के जमाने में तमाम ठीकेदार जो टेंडर पाने के लिए बलपूर्वक सेटिंग-गेटिंग करते हैं, उन पर भी पुलिस को नज़र रखनी चाहिए। इधर यूपी गवर्नमेंट की जटिल होती टेंडर प्रक्रिया में असफल होते दबंग ठीकेदारों का भी दर-पता खंगालना चाहिए कि वे क्या कर रहे हैं?

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मृतक से दुश्मनी तो नहीं?

पुलिस को यह भी देखना चाहिए कि कहीं मृतक जय सिंह से किसी तरह की दुश्मनी तो नहीं थी किसी की। लूट के साथ मर्डर भी कर दिया और रुपए भी हथिया लिए। ऐसी स्थिति में पुलिस आसपास के बैंक लुटेरों को तलाशती रहेगी और 40 लाख हाथ लगे लुटेरे कुछ दिन तक मौज भी करते रहेंगे।

राजनीतिक दबाव से मुक्त होना पड़ेगा

कितना साफ़-सुथरा राजनीतिक क्षेत्र है, यह तो सभी जानते हैं। ज्ञान, साधना, सेवा की जगह यदि लूट तथा मर्डर स्पेशलिस्ट की डिग्री मिल जाए तो पोलिटिकल- भौकाल बनाने में देरी नहीं लगती। ‘जिताऊ-प्रत्याशी’ ढूढ़ने में ऐसे लोग ही अव्वल होते हैं। ऐसी स्थिति में राजनीति के गलियारों में चक्कर लगाने वालों पर भी नज़र रखनी पड़ेगी। यदि ऐसा नहीं हुआ तो फिर इस तरह की घटना पर नियंत्रण कठिन होगा।

20 लाख मिलना चाहिए जय को और देव पांडेय को सिर्फ कागज़ नहीं दें लोग!

दो अबोध बेटियों के मृतक गार्ड-पिता को कम से कम 20 लाख मिलना चाहिए। कम्पनी 1 लाख देकर वाहवाही न लूटे। एक लाख होता ही कितना है? नर्सरी में एडमिशन तथा एक साल की पढ़ाई में इससे ज्यादा खर्च हो जाता है। ऐसी स्थिति में उसे कम्पनी 20 लाख दे। 5 लाख सरकारी सहायता मिलनी चाहिए। जहां तक दिलेरी दिखाने वाले देव पांडेय का प्रश्न है तो प्रशस्ति पत्र के साथ उसकी पढ़ाई की किताबें, आगे की पढ़ाई का जिम्मा लेना चाहिए जिनके पास कलेजा है तो। जहां तक प्रशस्ति पत्र का मामला है तो संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के हस्ताक्षर से युक्त सर्टिफिकेट तो कैरियर में काम आएगा वरना ‘ऐरे गैरे नत्थू खैरे’ का सर्टिफिकेट तौल के भाव बिकने के ही काम आएगा। 10-20 ऐसे सर्टिफिकेटों का अधिकतम ढाई सौ ग्राम वजन होगा।

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