कहानी सुनने में भले अजीब लगे, लेकिन इसके पीछे यंत्रणाओं की, एक पक्ष के कमजोर और परजीवी होने की, उसकी मिट्टी हो गई सालों की मेहनत की, कुचले गए सम्मान की, रौंदे गए स्वाभिमान की सैकड़ों साल लंबी दास्तान है। लोग हंस रहे हैं इस पर क्योंकि लोग औरतों के दुख पर सिर्फ हंसते हैं। वो भी, जिनका इस दुख में योगदान है।
खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क
ब्यूरो रिर्पोट नई दिल्ली। एक अजीबोगरीब मामला देश् की राजधानी से सटे गुरूग्राम का है । किसी गांव, देहात, सुदूर कस्बे का नहीं,आप को सुनने में ये कोई चुटकुला लग सकता है या कोई फिल्मी कहानी, लेकिन ये बात उतनी ही सच है, जितनी धूप, हवा, रौशनी और पानी।
एक शादीशुदा आदमी। दो साल पत्नी को अपने पास रखा, बच्चा पैदा किया, फिर उसे घर वापस भेज दिया। इसके बाद अपने ही दफ्तर में काम करने वाली एक और मॉडर्न, नौकरीपेशा लड़की के साथ लिव-इन में रहना शुरू किया।कहानी कुछ यूं है कि ग्वालियर की रहने वाली एक युवती (28 साल) का विवाह शहर के ही एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर से हुआ था. युवक हरियाणा के गुरुग्राम स्थित एक मल्टी नेशनल कंपनी में जॉब करता है।
शादी के बाद पति-पत्नी करीब 2 साल तक एक-दूसरे के संग गुरुग्राम में ही रहे. दोनों का एक बेटा भी हुआ. इसके बाद साल साल 2020 के मार्च में कोरोना के चलते लॉकडाउन लग गया. वर्क फ्रॉम होम के चलते इंजीनियर ग्वालियर आया, और कुछ दिन रहने के बाद ही वापस गुरुग्राम चला गया.लेकिन पत्नी और बच्चे को मायके में छोड़ गया. फिर हालात सामान्य होने पर भी वह पत्नी-बेटे को लेने नहीं आया.थक-हारकर ग्वालियर से उसकी पत्नी गुरुग्राम आ धमकी. तहकीकात करने पर पता चला कि लॉकडाउन के दौरान उसके पति के कंपनी में ही काम करने वाली महिला कर्मचारी से…
पत्नी को पता चला तो, उसने पहले हंगामा किया और फिर कोर्ट पहुंच गई, लेकिन बात मुकदमे और फैसले तक पहुंचती, इससे पहले ही कोर्ट के बाहर समझौता हो गया।जैसा कि मेडिएशन सेन्टर इसी समझौते के लिए बनाये गये है हर जिले में । काउंसिलर ने महिला की काउंसिलिंग की और समझाया कि कोर्ट-कचहरी करने का कोई फायदा नहीं। भरण-पोषण के नाम पर ‘चवन्नी’ मिलती है। बीच का रास्ता निकाल लो।
बीच का रास्ता तो निकल गया,आइए देखते है वो बीच का रास्ता है क्या?
वो ये कि आदमी हफ्ते में तीन दिन एक औरत के साथ गुजारेगा और तीन दिन दूसरी औरत के साथ। संडे के दिन उसकी छुट्टी है। उस दिन वो जो चाहे करे। दोनों औरतें मान गई हैं और खुशी-खुशी पति के दिए फ्लैट में अपनी घर-गृहस्थी सजा रही हैं।
सोमवार से बुधवार पत्नी के भाग जागेंगे और गुरुवार से शनिवार
LIV IN PARTNER
के। संडे को उन दोनों में से जिसके भी एक्स्ट्रा भाग जागे, वो तुलसी माता को एक्स्ट्रा जल चढ़ाएगी और सौभाग्य का एक्स्ट्रा सिंदूर लगाएगी।
;यहाँ अगर देखे तो मर्दों को उस मर्द की किस्मत से रश्क हो रहा है, औरतों की थोड़ी आह निकली है जरूर, लेकिन आत्मसम्मान को सिलबट्टे में पीस चुकी और इमाम दस्ते में कूट चुकी औरतें बस इतनी सी बात से संतुष्ट हैं कि सिर पर छत तो है न।दो वक्त की रोटी की गारंटी है और हफ्ते में तीन दिन तो पति का साथ है। पूरा ही छोड़ देता तो वो कहां जाती, किसका मुंह ताकती।
जिनके बुनियादी हक ही छीन लिए गए हो वो सिर्फ जिंदा रहने की लड़ाई लड़ती हैं
जिन औरतों की जिंदगी से उनके ये बुनियादी हक ही छीन लिए गए, वो आत्मसम्मान के लिए जान नहीं देतीं। वो सिर्फ जिंदा रहने की लड़ाई लड़ती हैं। इंसान मखमली चादर के बारे में तब सोचता है, जब पेट भरा हो और सोने को पलंग तो हो। सिर पर छत ही नहीं तो चटाई भी फूलों की सेज होती है।
इसलिए विमर्श का मुद्दा यहां स्वाभिमान नहीं है। इस पूरे मसले में जो बात सबसे इंटरेस्टिंग है, वो है काउंसिलिंग करने वाले वकील का ये कहना कि हमारे देश में एल्युमनी के नाम पर पत्नी को सात-आठ हजार रुपए ही मिलते हैं।
पति की सैलरी चाहे दो लाख क्यों न हो, कोर्ट को लगता है कि आर्थिक रूप से पति पर निर्भर पत्नी सात हजार रुपए में महीने का खर्चा निकाल लेगी।
कल्पना करें तलाक की प्रक्रिया से गुजर रही और गुजारे-भत्ते के लिए कोर्ट और पति का मुंह ताक रही हजारों औरतें इस देश में किस दुख और त्रासदी से गुजर रही हैं
हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि तलाक की प्रक्रिया से गुजर रही और गुजारे-भत्ते के लिए कोर्ट और पति का मुंह ताक रही हजारों औरतें इस देश में किस दुख और त्रासदी से गुजर रही हैं।उसके पास कोई प्रोफेशनल एजुकेशन नहीं है, नौकरी के, काम के, प्रोडक्टिविटी के, क्रिएटिविटी के सबसे बेहतरीन साल उस औरत ने उस आदमी के लिए खाना बनाते, उसकी अंडरवियर-बनियान धोते, उसका एंटरटेंमेंट करते और उसके बच्चे पालते हुए गुजारे हैं। वह उसका श्रम और इंवेस्टमेंट था। वही उसके सुख की, सुरक्षा की, भविष्य की गारंटी थी।
लेकिन वो ऐसा इंवेस्टमेंट निकला, जिसमें किया गया सारा योगदान एक दिन डूब गया और अब औरत सड़क पर है। उसके लिए अब कहीं शरण नहीं, कहीं न्याय नहीं।
इंवेस्टमेंट दोनों ही कर रहे थे एक का निकला सार्थक दूसरे का……………………………………….
शादी के इतने सालों में यही सारा इंवेस्टमेंट आदमी भी कर रहा था, लेकिन उसका इंवेस्टमेंट ज्यादा सुरक्षित जगह पर था। वह खुद को नौकरी में में इंवेस्ट कर रहा था। प्रोफेशनल सफलता में, प्रमोशन में, घर-जमीन खरीदने में, बैंक बैलेंस बनाने में, स्टॉक मार्केट और म्यूचुअल फंड में, नेटवर्किंग में, अपनी मार्केटिंग में। अपने पैरों के नीचे एक मजबूत जमीन और सिर के ऊपर सॉलिड आसमान में।
इंवेस्टमेंट दोनों ही कर रहे थे। आदमी का इंवेस्टमेंट सही जगह पर था। उसकी मेहनत डूबी नहीं। वो सड़क पर नहीं आया। रिश्ता टूटने के बाद भी उसके सिर पर छत है, पैरों के नीचे जमीन और बैंक में पैसे। वो अपने लिए दूसरी जिंदगी खड़ी कर सकता है, पैसों से सारी सेवाएं-सुविधाएं खरीद सकता है, लेकिन औरत सड़क पर है।
COURT साफ शब्दों में ऐसे नहीं कहता- “Oh poor woman ,It was a bad Investment”समाज भी नहीं कहता, परिवार भी नहीं। सब कहते हैं कि औरत की तकदीर ही खराब थी। भाग्य में यही लिखा था, विधाता की यही मर्जी थी। कोई ये नहीं कहता कि पैसा गलत जगह लगाया। ये दुनिया का सबसे इनसिक्योर बॉन्ड है। कब डूब जाए, पता नहीं।
घर, परिवार, समाज और लोग ये बात कहते नहीं क्योंकि उन्होंने सदियों से औरतों को इसी इनसिक्योर इंवेस्टमेंट की ट्रेनिंग दे रखी है ताकि स्टॉक मार्केट, जॉब मार्केट और सभी सुरक्षित जगहों पर उनकी मोनोपॉली कायम रहे। उनका अकेले का कब्जा। उनका एकछत्र साम्राज्य।
और अगर किसी दिन ऐसा हो कि औरत रोती-बिलबिलाती न्याय के लिए कोर्ट पहुंच जाए तो कोर्ट के बाहर उसे रोटी के दो टुकड़े देकर समझा-बुझाकर समझौता करवा दो।
औरत के सिर पर छत भी रहेगी और मर्द के पास आजादी भी। औरत के सम्मान की कीमत पर मर्द का राज कायम रहेगा। समझौता कराने वाले वकील को महानता और इंसानियत का एक्स्ट्रा तमगा मिलेगा, सो अलग।
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