सलिल पांडेय
‘लगता नहीं है मन मेरा अब इस जहां में’ कहते हो गए अलविदा
बड़े पेड़ के गिरने से बड़ा इलाका हो जाता है छाया-विहीन : मध्य दोपहर हुआ शाम ढले की तरह
मिर्जापुर। उद्योग, राजनीति, सामाजिक सरोकारों तथा रिश्तों का ताना-बाना बुनने में दक्ष तथा सिद्धहस्त ठाकुर राजकुमार सिंह गुरुवार 6 जुलाई को ‘लगता नहीं है मन मेरा इस जहां में’ कहते हुए अनन्तलोक की यात्रा पर चल बसे। वे 91 वर्ष के थे। इधर कुछ ही दिनों पूर्व वे अस्वस्थ हुए। उनका इलाज नोएडा के अपोलो में चल रहा था। लेकिन 3 जुलाई को वहां डॉक्टरों को आभास हो गया था कि उनकी आयु पूरी हो चुकी है। लिहाजा उन्हें मिर्जापुर स्थित रामकृष्ण अस्पताल में एडमिट किया गया था। कुल 15 दिनों की अस्वस्थता के बाद उन्होंने आखिरी सांस ली।
बहुमुखी व्यक्तित्व
स्व राजकुमार सिंह विगत 45 सालों से मिर्जापुर की धड़कनों में समाए रहते थे। राजनीतिक एवं प्रशासनिक से लेकर औद्योगिक, सामाजिक कार्यक्रमों में उनकी भागीदारी ही नहीं सफलता के लिए अहं भूमिका होती थी। उन्हें वरदान प्राप्त था कि जिस कार्य में हाथ लगाते थे, सफ़लता उनका वरण करती थी। स्व सिंह व्यक्तित्व और कृतित्व को व्याख्यायित करने के लिए शब्दों का कालीन बनाने की क्षमता कोई शब्दों की बुनावट करने में कोई पारंगत शिल्पकार ही कर सकता है।
ठहाकों के बादशाह
स्व राजकुमार सिंह की मौजूदगी से उदासी दुम दबाकर भाग जाती थी। बहुत जटिल और बड़ी बात मुहावरों में कर जाते थे। उनकी सेवा में उनके पुत्रों सिद्धनाथ सिंह, विनोद कुमार सिंह, अनिल कुमार सिंह अंतिम दम तक लगे रहे। स्व राजकुमार सिंह के रिश्तों की जमीन से गत पँचायत चुनाव में उनकी पुत्रवधू मीनाक्षी सिंह क्षेत्र पंचायत प्रमुख निर्विरोध फसल काटने में सफल रहीं। नोएडा में स्व राजकुमार सिंह को एक यूनिट ब्लड की जरूरत पड़ी तो अनिल के पुत्र ने एक्सचेंज सिस्टम के तहत AB+ ब्लड दिया। डोनर की खोज नहीं होने दिया।