सलिल पांडेय
- आकर्षक व्यक्तित्व के मदन मोहन तिवारी आकस्मिक निधन से परिवार एवं परिचितों को लगा भारी धक्का।
- जुबां से शब्द गायब हो जा रहे तो आंखों से आंसू शब्द बन कर ढलक जा रहे।
मिर्जापुर। सांसों के क्रेडिट और डिपाजिट का क्रम बन्द होते जिंदगी का खाता (एकाउंट) भी स्थायी रूप से बंद होना स्वाभाविक है लेकिन फिक्स डिपाजिट को बीच में तोड़ने पर ब्याज में कटौती से जो क्षति होती है, वहीं क्षति पँजाब नेशनल बैंक के मैनेजर पद से मात्र तीन वर्ष पूर्व सेवानिवृत्त हुए मदन मोहन तिवारी के निधन से परिवार, समाज, बैंकिंग एवं परिचितों को जो कष्ट हो रहा है, वह असह्य है। प्रथमतः तो स्वीकार- योग्य नहीं लगी निधन की सूचना लेकिन परम शाश्वत विधान को स्वीकार करने की बाध्यता तो रहती ही है।
बैंकिंग समुदाय के ‘मद-न’ भी थे तो ‘मोह-न’ भी थे मदन मोहन तिवारी
स्व मदन मोहन तिवारी का नाम बैंकिंग क्षेत्र में जन-जन के परम हितैषी और अधिकारी, कर्मचारी के साथ जनता के सहयोगी के रूप में लिया जाता रहा। पँजाब नेशनल बैंक की जिस शाखा में रहे, वहां कोई भी जटिलता एवं समस्या प्रवेश ही नहीं कर पाती थी। ऐसा नहीं कि जटिलताएं आती नहीं थी लेकिन स्व तिवारी की मृदुभाषिता के चलते उल्टे पांव भाग जाती थी। बैंकिंग यूनियन के अनेकानेक पदों पर रहते स्व तिवारी किसी भी जोर-जुल्म के टक्कर में कदम हमेशा आगे रहे ।
‘पतझड़ के मौसम में गिर पड़ा जिंदगी का पत्ता
धार्मिक कथाओं के अनुसार वसंत ऋतु के सखा मदन की इच्छा शायद हुई, सो मदन तिवारी उसी अनन्त में विलीन हो गए जहाँ किसी का वश नहीं चलता। ‘ऋतुओं में मैं वसन्त हूं’ का पाठ अर्जुन को पढ़ाने वाले मोहन (कृष्ण) ने जिस आत्मा के अविनाशी रूप का जिक्र किया, उसे स्व तिवारी साकार कर गए। घर-परिवार, यार-मित्र, परिचित-शुभचिंतक सभी निधन की खबर से चिंतित तो हैं। किसी के शब्द गायब हो जा रहे हैं तो किसी की आंखों से आंसू शब्द बनकर ढलक जा रहे हैं। अत्यंत मनमोहक व्यक्तित्व के मदन मोहन अब सिर्फ चित्रों में ही देखे जा सकेंगे। स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त कृष्ण मोहन तिवारी ने जानकारी दी कि प्रयागराज के एक चिकित्सक के इलाज की शिथिलता से यह विसंगति आई वरना वे स्वस्थ थे। उम्र 63 वर्ष के करीब थी।