खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 126वीं जयंती पर पूरा देश उन्हें नमन कर रहा है. 2021 से उनकी जयंती 23 जनवरी को पराक्रम दिवस के तौर पर मनाया जाता है।नेता जी ने अपने वीरतापूर्ण कार्यों से अंग्रेज़ी सरकार की नींव को हिलाकर रख दिया था। जब तक नेताजी रहे, तब तक अंग्रेज़ी हुक्मरान चैन की नींद नहीं सो पाए। सुभाष चंद्र बोस (Subhas Chandra Bose) एक भारतीय राष्ट्रवादी और महान स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ जोरदार अभियान चलाया और भारतीयों के बड़े नायक बन गए।

बोस को पहली बार 1942 की शुरुआत में जर्मनी में ‘नेताजी’ के नाम से बुलाया गया था जो बाद में पूरे भारत में उनके नाम से जुड़ गया

बोस को पहली बार 1942 की शुरुआत में जर्मनी में ‘नेताजी’ के नाम से बुलाया गया था जो बाद में पूरे भारत में उनके नाम से जुड़ गया । सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 (Subhas Chandra Bose Born) को कटक में प्रभावती बोस और जानकीनाथ बोस के घर हुआ था (Subhas Chandra Bose Parents). सुभाष अपने माता-पिता की नौवीं संतान और छठे पुत्र थे। जानकीनाथ, एक सफल सरकारी वकील थे. सुभाष ने कटक के प्रोटेस्टेंट यूरोपीय स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा हासिल की। इसके बाद, उन्होंने कटक के रेनशॉ कॉलेजिएट स्कूल में पढ़ाई की । 1912 में, उन्होंने मैट्रिक परीक्षा में दूसरा स्थान हासिल किया. सुभाष बोस ने 1913 में प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता में दाखिला लिया। उन्होंने 1918 में स्कॉटिश चर्च कॉलेज से दर्शनशास्त्र में बी.ए. किया। वह कलकत्ता विश्वविद्यालय के सभी दर्शनशास्त्र के छात्रों में दूसरे स्थान पर रहे।

बोस अगस्त 1920 में  छह रिक्तियों वाली ICS की परीक्षा में बैठे और चौथे स्थान पर रहे लेकिन अपने राष्ट्रवादी विचारों के कारण इसकी अंतिम परीक्षा में बैठने से मना कर दिया (Subhas Chandra Bose Education). बोस की पत्नी ऑस्ट्रियाई मूल की एमिली शेंकल थीं।जिनसे नवंबर 1942 में उन्हें एक बेटी, अनीता बोस हुईं ।

महात्मा गांधी से मतभेद के कारण बोस ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से दिया था इस्तीफा

बोस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रवादी आंदोलन में शामिल होने के लिए 1921 में इंग्लैंड से भारत लौट आए। वह 1938 में कांग्रेस के अध्यक्ष बने, 1939 में उन्हें फिर से अध्यक्ष चुना गया लेकिन महात्मा गांधी से मतभेद के कारण बोस ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और अंततः उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया गया ।

महात्मा गांधी के विचारों से असहमति

सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी के अहिंसा के विचारों से सहमत नहीं थे. वास्तव में महात्मा गांधी उदार दल का नेतृत्व करते थे, वहीं सुभाष चंद्र बोस जोशीले क्रांतिकारी दल के प्रिय थे. महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस के विचार अलग-अलग थे लेकिन वे यह अच्छी तरह जानते थे कि महात्मा गांधी और उनका मक़सद एक है, यानी देश की आज़ादी. नेता जी के मन में गांधी जी के लिए अपार श्रद्धा थी. तभी तो सबसे पहले गांधीजी को राष्ट्रपिता कह कर नेताजी ने ही संबोधित किया था. हालांकि गांधीजी के विरोध के चलते इस ‘विद्रोही अध्यक्ष’ ने त्यागपत्र देने की आवश्यकता महसूस की. गांधी के लगातार विरोध को देखते हुए उन्होंने स्वयं कांग्रेस छोड़ दी।

फॉरवर्ड अखबार के संपादक के तौर पर काम

सुभाष चंद्र बोस अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ वो एक बुलंद और सशक्त आवाज़ थे। ICS की नौकरी छोड़कर लंदन से भारत लौटने के बाद नेताजी की मुलाकात देशबंधु चितरंजन दास से हुई। उन दिनों चितरंजन दास ने फॉरवर्ड नाम से एक अंग्रेज़ी अखबार शुरू किया हुआ था और अंग्रेज़ों के जुल्मों-सितम के खिलाफ मुहिम छेड़ रखी थी. सुभाष चन्द्र बोस से मिलने के बाद चितरंजन दास ने उन्हें फॉरवर्ड अखबार का संपादक बना दिया. नेताजी उस अखबार में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ ज़ोर-शोर से लिखकर अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ माहौल तैयार कर रहे थे. कलम से शुरू की गई इस मुहिम की वजह से नेताजी को साल 1921 में छह महीने की जेल भी हुई।

बोस ने बर्लिन में जर्मन फंड्स से फ्री इंडिया सेंटर खोला

अप्रैल 1941 में बोस नाजी जर्मनी पहुंचे, जहां भारत की स्वतंत्रता के लिए उन्होंने अपने विचार पेश किए। बर्लिन में उन्होंने जर्मन फंड्स से फ्री इंडिया सेंटर खोला।बोस ने वहां फ्री इंडिया लीजन के लिए 3,000 लोगों की भर्ती की (Free India Legion). एडोल्फ हिटलर ने मई 1942 में बोस से मुलाकात की और उनकी जापान की यात्रा के लिए एक पनडुब्बी की व्यवस्था की (Adolf Hitler met Bose in 1942). वे मई 1943 में जापान पहुंचे. जापानी समर्थन से बोस ने भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) को नया रूप दिया, जिसमें भारतीय सेना के युद्धबंदी शामिल थे।

महिलाओं के लिए झांसी की रानी रेजीमेंट

आजाद हिंद फौज यानि इंडियन नेशनल आर्मी का मुख्य आधार एकता, त्याग और निष्ठा रखा गया और इसी भावना से संगठन में नए आदर्शों की भावना का विकास किया गया. इसके साथ ही महिलाओं के लिए झांसी की रानी रेजीमेंट का गठन किया गया जिसकी कमान कैप्टन लक्ष्मी स्वामीनाथन (लक्ष्मी सहगल) को सौंपी गई।

आज़ाद हिंद फौज़ ने ब्रिटिश सेना पर किया हमला

आज़ाद हिंद फौज़ ने साल 1944 की फरवरी में ब्रिटिश सेना पर हमला कर दिया. इस फौज़ ने पलेल और तिहिम समेत कई भारतीय प्रदेशों को अंग्रेज़ों से मुक्त करा दिया था. सितंबर 1944 में शहीदी दिवस के भाषण में ही नेताजी ने आज़ाद हिंद सैनिकों को कहा था कि तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा. ये सुभाष चंद्र बोस का ही असर था, जिसने अंग्रेज़ी फौज़ में मौजूद भारतीय सैनिकों को आजादी के लिए विद्रोह करने पर मजबूर कर दिया था।

आज़ादी से चार साल पहले आज ही के दिन वर्ष 1943 में भारत की पहली निर्वासित सरकार बनाई गई थी. और इस सरकार का गठन नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर में खुद किया था

ज्यादातर इतिहास की किताबों में यही बताया जाता है कि, भारत की पहली अस्थायी सरकार का गठन आज़ादी से 347 दिन पहले 2 सितम्बर 1946 को हुआ था. और पंडित जवाहर लाल नेहरू इस सरकार में प्रधानमंत्री थे। लेकिन आज़ादी से चार साल पहले आज ही के दिन वर्ष 1943 में भारत की पहली निर्वासित सरकार बनाई गई थी. और इस सरकार का गठन नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर में खुद किया था. देखें क्या है पूरी कहानी ॽ

आजादी से पहले हिन्दुस्तान की पहली सरकार

उस वक्त भारत पर अंग्रेजों का राज था, लेकिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्टूबर 1943 को वो कारनामा कर दिखाया, जिसे अब तक किसी ने करने के बारे में सोचा तक नहीं था. उन्होंने आजादी से पहले ही सिंगापुर में आजाद हिंद सरकार की स्थापना की।नेताजी ने इस सरकार के जरिए अंग्रेजों को साफ कर दिया कि अब भारत में उनकी सरकार का कोई अस्तित्व नहीं है और भारतवासी अपनी सरकार चलाने में पूरी तरह से सक्षम हैं।

21 अक्टूबर 1943 को भारत की पहली सरकार बनी थी. उस सरकार का नाम था आजाद हिंद सरकार

आजाद हिंद सरकार के बनने से आजादी की लड़ाई में एक नए जोश का संचार हुआ. करीब 8 दशक पहले 21 अक्टूबर 1943 को देश से बाहर अविभाजित भारत की पहली सरकार बनी थीं।उस सरकार का नाम था आजाद हिंद सरकारं। अंग्रेजी हुकूमत को नकारते हुए ये अखंड भारत की सरकार थी।4 जुलाई 1943 को सिंगापुर के कैथे भवन में हुए समारोह में रासबिहारी बोस ने आज़ाद हिंद फ़ौज की कमान सुभाष चंद्र बोस के हाथों में सौंप दी। इसके बाद 21 अक्टूबर 1943 को आजाद हिंद सरकार की स्थापना हुई।आज़ाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से सुभाष चन्द्र बोस ने स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनाई।

नेता जी के आज़ाद हिन्द सरकार को 9 देशों ने दी थी मान्यता

जापान ने 23 अक्टूबर 1943 को आज़ाद हिंद सरकार को मान्यता दी. जापान ने अंडमान और निकोबार द्वीप आजाद हिंद सरकार को दे दिए. सुभाष चंद्र बोस उन द्वीपों में गए और उनका नया नामकरण किया। अंडमान का नया नाम शहीद द्वीप और निकोबार का स्वराज द्वीप रखा गया।

30 दिसंबर 1943 को अंडमान निकोबार में पहली बार सुभाष चंद्र बोस ने फहराया था तिरंगा

30 दिसंबर 1943 को ही अंडमान निकोबार में पहली बार सुभाष चंद्र बोस ने तिरंगा फहराया था। ये तिरंगा आज़ाद हिंद सरकार का था. सुभाष चंद्र बोस भारत की पहली आज़ाद सरकार के प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री थे. वित्त विभाग एस.सी चटर्जी को, प्रचार विभाग एस.ए. अय्यर को और महिला संगठन कैप्टन लक्ष्मी स्वामीनाथन को सौंपा गया. आज़ाद हिंद सरकार को 9 देशों की सरकारों ने अपनी मान्यता दी थी, जिसमें जर्मनी, जापान फिलीपींस जैसे देश शामिल थे। आजाद हिंद सरकार ने कई देशों में अपने दूतावास भी खोले थे।

21 मार्च 1944 को ‘दिल्ली चलो’ के नारे के साथ आज़ाद हिंद सरकार का हिंदुस्तान की धरती पर आगमन हुआ. आजाद हिंद सरकार के पहले प्रधानमंत्री के रूप में नेता जी ने लिया था शपथ

आज़ाद हिंद सरकार ने राष्ट्रीय ध्वज के रूप में तिरंगा को चुना था, रवींद्र नाथ टैगोर रचित ‘जन-गण-मन’ को राष्ट्रगान बनाया था. एक दूसरे से अभिवादन के लिए जय हिंद का प्रयोग करने की परंपरा शुरू की गई थी। 21 मार्च 1944 को ‘दिल्ली चलो’ के नारे के साथ आज़ाद हिंद सरकार का हिंदुस्तान की धरती पर आगमन हुआ. आजाद हिंद सरकार के पहले प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेते हुए नेताजी ने ऐलान किया था कि लाल किले पर एक दिन पूरी शान से तिरंगा लहराया जाएगा। आजाद हिंद सरकार ने देश से बाहर अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी और आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी। इस सरकार ने अंग्रेजों को बता दिया कि भारत के लोग अब अपनी जमीन पर बाहरी हुकूमत को किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेंगे।आजाद हिंद सरकार की स्थापना के 75वीं वर्षगांठ पर 2018 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से तिरंगा झंडा फहराया था। .

बोस ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह पर स्वतंत्र भारत की एक अस्थायी सरकार की घोषणा की

बोस की अध्यक्षता में जापानी कब्जे वाले अंडमान और निकोबार द्वीप समूह पर स्वतंत्र भारत की एक अस्थायी सरकार की घोषिणा की गई थी. 1944 और 1945 में आईएनए ने जापानी सेना के साथ हमला किया, जिसे ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार की भारतीय सेना ने नाकाम कर दिया. इस युद्ध में लगभग आधी जापानी सेना और आईएनए दल के सैनिक मारे गए थे।

18 अगस्त, 1945 को जापानी ताइवान में उनका ओवरलोडेड विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया. माना जाता है कि थर्ड-डिग्री बर्न से 18 अगस्त 1945 को उनकी मृत्यु हो गई

बोस ने ब्रिटेन की अत्याचारी औपनिवेशिक सरकार के खिलाफ भविष्य की योजना बनाने के लिए सोवियत संघ जाने का फैसला किया. 18 अगस्त, 1945 को जापानी ताइवान में उनका ओवरलोडेड विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया. माना जाता है कि थर्ड-डिग्री बर्न से 18 अगस्त 1945 को उनकी मृत्यु हो गई । जो अभी भी रहस्य बना हुआ है।

बोस की मृत्यु के बाद, आईएनए के 300 अधिकारियों पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया, लेकिन कांग्रेस के विरोध के कारण ब्रिटेन इससे पीछे हट गया।

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