खबरी पोस्ट नेशनल न्यूज नेटवर्क
चंदौली। मुख्यालय स्थित वार्ड नं0 6 इन्दिरा नगर में माैैैर्य समुदाय के लोगों द्वारा बुधवार को चक्रवर्ती सम्राट अशोक का जन्मोत्सव समारोह पूर्वक मनाया गया। इस दौरान चक्रवर्ती सम्राट अशोक के जीवनकाल पर प्रकाश डालते हुए नागेन्द्र प्रताप मौर्य ‘हीरा’ ने कहाकि चक्रवर्ती सम्राट अशोक का जन्म 304 ई.पू0 बिहार के पाटलिपुत्र में हुआ था। सम्राट बिन्दुसार के पुत्र और मौर्य वंश के तीसरे राजा के रूप में जाने गए थे।
चक्रवर्ती सम्राट अशोक का जन्मोत्सव समारोह पूर्वक मना
चन्द्रगुप्त मौर्य की तरह ही उनका पोता भी काफी शक्तिशाली था। पाटलिपुत्र नामक स्थान पर जन्म लेने के बाद उन्होंने अपने राज्य को पूरे अखंड भारतवर्ष में फैलाया और पूरे भारत पर एकछत्र राज किया। अशोक को अपने जीवन में बहुत से सौतेले भाइयों से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा। थोड़ा ही बड़ा होने के बाद अशोक की सैन्य कौशल देखने को मिलने लगी थी। उनके युद्ध कौशल को और अधिक निखार देने के लिए शाही प्रशिक्षण की भी व्यवस्था की गयी थी।
एक छड़ी से शेर को मारने की कला का मिलता है वर्णन
इस प्रकार से अशोक को काफी कम आयु में तीरंदाजी के साथ अन्य जरुरी युद्ध कौशलो में काफी अच्छी महारत मिल चुकी थी। इसके साथ ही वे उच्च कोटि के शिकारी भी थे और उनके द्वारा एक छड़ी से शेर में मारने की कला का भी वर्णन मिलता है। उनकी प्रतिभा को देखते हुए उन्हे मौर्य शासन के अवन्ति में होने वाले दंगों को रोकने भी भेजा गया था। अपने समय के दो हजार वर्षो ने बाद भी अशोक के राज्य के प्रभाव दक्षिण एशिया में देखने को मिलते है।
बौद्ध धर्म में भगवान बुद्ध के बाद सर्वाधिक स्थान राजा अशोक और उनके धर्म कार्यों को
अपने काल में जो अशोक चिन्ह निर्मित किया था उसका स्थान आज भी भारत के राष्ट्रीय चिन्ह में है। बौद्ध धर्म में भगवान बुद्ध के बाद सर्वाधिक स्थान राजा अशोक और उनके धर्म कार्यों को ही दिया जाता है।
इस दौरान नरेंद्र मौर्य, सानंद मौर्य, प्रह्लाद मौर्य, विजय मौर्य, अमित मौर्य, ईश्वर दत्त मौर्य, दिवेश मौर्य, राजकुमार मौर्य, ओमिका मोर्या, रेखा मौर्या, इंद्रजीत मौर्य, आनंद मौर्य, राहुल मौर्य, भगेलू मौर्य, मनोज मौर्य, मार्कण्डे मौर्य, दिव्यांशु मौर्य, वेदप्रकाश मौर्य, प्रकाश मौर्य, सूरज, रोहित, छैबर मौर्य, सुराजी देवी, धनञ्जय मौर्य, महेंद्र मौर्य, नथुनी चौहान सहित दर्जनों लोग उपस्थित रहे। अध्यक्षता गौरी शकंर व संचालन भोलानाथ विश्वकर्मा ने किया।