सलिल पांडेय, मिर्जापुर
अब ‘नेता शरणं गच्छ’ का महामंत्र जप रहे
सामान्यतया रह-रह कर ‘बुद्धं शरणं गच्छ’ महामंत्र भूल कर महाशय ‘नेता शरणं गच्छ’ का अध्याय खोल लिए हैं। जिस संस्कृति को ‘राष्ट्रवादी संस्कृति’ कहने पर वे परमाणु-बम सदृश हो जाते थे, उसी संस्कृति के बड़े उपासकों का शिष्यत्व ग्रहण किए हुए दिखाई पड़ रहे हैं ताकि उनका शर्तिया बचाव हो सके और गले में पड़े कानूनी कार्रवाई के फंदे से मुक्ति भी मिल सके।
बड़े मंगलवार को नहीं दिखे हनुमान के बड़े भक्त
मिर्जापुर। भगवान श्रीराम के नम्बर एक के सेवक हनुमानजी के उन भक्तों की लिस्ट बनाई जाए जो श्रीराम का नाम जपकर राजनीति करते हों या बहुत बड़े धर्मनिष्ठ होने का दावा करते हों या हर मंगलवार हनुमान जी को भोग-प्रसाद चढ़ाकर स्वयं ही ग्रहण करते हों परन्तु ज्येष्ठ (जेठ) के तीसरे मंगलवार को राह चलते आमजन को पानी ही सही पिलाने के विधान का पालन करने वालों को पूरे शहर में लोग खोजते रहे, पर कोई दिखा नहीं।
दिखे भी तो श्रमिक वर्ग के ही लोग
जोगिया धोती, जोगिया दुपट्टा की बहार तो धार्मिक अवसरों पर खूब होती है। लक्ज़री गाड़ियों पर ‘जयश्रीराम’ भी लिखा दिख जाता है लेकिन तीसरे मंगलवार, 23 मई को नगर के वासलीगंज (साईं मन्दिर) में तथा आर्यकन्या इंटर कालेज के पास सिक्ख धर्म के वे अनुयायी जो बर्तन निर्माण में बतौर श्रमिक काम करते हैं, उन्हें ही कड़ी धूप की परवाह न कर अपराह्न तक शर्बत पिलाते देखा गया। वरना बड़े-बड़े भक्त इस दिन छोटे हो गए थे।
न मुख्य अतिथि और न बैनर
प्रायः दो-पांच रुपए की वस्तु बांटने में भारी-भरकम मंच, बैनर, उस पर दर्जनों नाम लिखे जाने के दौर में इन सिक्ख युवकों ने सेवा तो की ही, साथ ही हनुमान भक्तों को प्रेरणा भी दी।
‘बुद्धं शरणं गच्छ’भूल गए
रंग जमाने, ज्ञान बघारने और खुद को आडंबर एवं अंध-विश्वास से ऊपर उठकर महापुरुष साबित करने के लिए ‘बुद्धं शरणम् गच्छ’ जपना ताश के खेल में ट्रंप कार्ड के समान होता ही कतिपय लोगों के लिए। ऐसे लोग बड़े-बड़े लोगों को इस कार्ड से धराशायी इसलिए कर देते हैं क्योंकि इसके विपरीत मुंह खोलने से तत्काल किसी एक्ट में मुकदमा भी दर्ज होने की संभावना होती है। लेकिन सनातन संस्कृति के नौंवे अवतार के नाम को ‘स्व-अर्थ’ के लिए जपने वाले अपने सीने पर हाथ रखकर जरा बताएं कि वे कितना इस मंत्र को आत्मसात करते हैं? क्योंकि जब गोट्टी कहीं फंस जाती है तो किस तरह इस मंत्र से तौबा-तौबा कर किसी नए मन्त्र का एग्रीमेंट कर लेते हैं।
नेता शरणं गच्छ!
इन दिनों जिले में छोटे-मोटे नहीं बल्कि ‘बड़का साहब’ की उपाधि से विभूषित एक महाशय ‘नेता शरणं गच्छ’ की तकनीकि का उपयोग इसलिए कर रहे हैं क्योंकि सरकारी धन का उपभोग खानदानी सम्पत्ति समझ कर करते जाल में फंसने की स्थिति में आ गए हैं। इस जाल को छोटी कक्षाओं में ‘शेर के जाल में फंसने पर चूहे की मदद लेने वाली’ कहानी की तर्ज पर वे दोहराते नजर आ रहे हैं।
ऑफ-लाइन टेंडर के हो गए थे वेंडर
चुनार क्षेत्र के अहरौरा लगायत लालगंज परिक्षेत्र में सुगम-पथ संचलन के लिए 63 करोड़ का जो टेंडर निकला, उस पर आन-लाइन निर्देश जारी होने के बाद महोदय जी रेलवे स्टेशन के अवैध वेंडर (कुली) की स्टाईल में ऑफ-लाइन धंधा-पानी में लग गए थे। इस कोशिश में धर लिए गए। जिले से लेकर राजधानी लखनऊ तक हिलने लगा। जांच की आंच लगते नया पैतरा अपनाने के लिए वे विवश होते दिख रहे हैं।