सलिल पांडेय,
खबरी पोस्ट न्यूज़
- एक दूसरे मंत्री ने रफ़ी अहमद किदवई की श्रद्धांजलि सभा में कहा : रफ़ी साहब के गाए गीत अभी भी गुनगुनाए जाते हैं
- कभी भाषण यह भी सुनने को मिला कि गुरु गोरखनाथ, गुरुनानकदेव, कबीर साथ बैठते थे तब गहन मन्त्रणा होती थी
- इसलिए जनप्रतिनिधियों की योग्यता का भी अध्यादेश संसद में पेश हो
- महिला आरक्षण के साथ ‘शैक्षणिक योग्यता की अनिवार्यता’ कानून भी पारित हो
- बदलाव के दौर में ‘काबिलियत’ से परहेज क्यों?
मिर्जापुर। उक्त भाषणों का रिकार्ड मिल जाएगा कि जब एक मंत्री को विश्विद्यालय का मतलब बीएचयू समझ में आता रहा और वे मुख्य अतिथि की हैसियत से बीएचयू में इस तरह का जब भाषण देने लगे तो ठहाका लगना स्वाभाविक था। इसी तरह एक मंत्री ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा आजादी के बाद प्रथम संचार मंत्री की श्रद्धांजलि सभा में बोल पड़े-‘रफ़ी साहब के गीत लोग गुनगुनाते हैं’। दर-असल मंत्री ने रफ़ी अहमद किदवई की जगह फिल्मी गायक मुहम्मद रफ़ी समझ लिया क्योंकि दोनों के नाम में ‘रफ़ी’ शब्द लगा था
अभी हाल में एक प्रभावशाली राजनेता ने गुरु गोरखनाथ, सन्त कवि कबीर, सिक्ख धर्मगुरु गुरुनानक देव के आपस में साथ बैठकर मन्त्रणा करने का भाषण दे दिया। जबकि तीनों के जन्म तथा निधन में काफी अंतर है। ऐसी स्थिति में साथ बैठकर मन्त्रणा का संयोग तो नहीं बन रहा !
‘जब हम सब जागे तब वो सब भागे’
एक मंत्री से राष्ट्रगान सुनाने के लिए कहा गया तब ‘जन गण मन अधिनायक जय हे’, के बाद की पंक्ति में वे बोल पड़े-‘जब हम सब जागे तब वो सब भागे..’।
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अमृतकाल में अयोग्यता- काल से मुक्ति मिले
ऐसी स्थिति में लोकसभा और विधानसभा चुनावों में महिला आरक्षण के साथ जनप्रतिनिधियों की योग्यता का भी निर्धारण किए जाने की आवाज़ उठने लगी है। क्योंकि 75 वर्ष बाद भी अंगूठा-टेक जनप्रतिनिधि होंगे तब इसे अमृतकाल नहीं बल्कि ‘अज्ञान-काल’ ही कहा जाएगा। चुनाव लड़ने के पहले न्यूनतम एक या दो वर्ष का ‘चुनावी-डिप्लोमा’ की व्यवस्था हो ताकि जीवन भर अपराध करने वाला जेल से ही चुनाव लड़कर टॉप पर न पहुंच जाए। वह समाज में आकर पहले शुद्धिकरण करे फिर चुनाव लड़े। बदलाव की बयार चल रही तो काबिलियत से परहेज क्यों?